एफएटीसीए का अधिनियमन और आईजीए के हस्ताक्षर
2010 में, अमेरिका ने अमेरिकी निवासियों और नागरिकों के विदेशों में वित्तीय खातों के संबंध में सूचना प्राप्त करके कर चोरी को नियंत्रित करने के उद्देश्य से "विदेशी खाता कर अनुपालन अधिनियम" (एफएटीसीए) को अधिनियमित किया था। एफएटीसीए के प्रावधानों को वास्तव में विदेशी वित्तीय संस्थानों को किए गए अमेरिकी स्रोत वाले भुगतान पर 30 प्रतिशत के प्रारंभिक कर के लिए मुहैया कराया गया था जबतक अमेरिकी व्यक्तियों द्वारा नियंत्रित उद्यमों (फर्म/कंपनियां/न्यास) या अमेरिकी व्यक्तियों द्वारा विदेशी वित्तीय संस्थानों में खातों के बारे में सूचना देने के लिए आंतरिक राजस्व सेवा (अमेरिकी आईआरएस) के साथ समझौता न हो। चूंकि संप्रभु राष्ट्रों (भारत सहित) के घरेलू कानून अमेरिका के साथ सीधे एफआई द्वारा ग्राहकों की गोपनीय जानकारी सांझा करने की अनुमति नहीं देते अमेरिका ने विभिन्न देशों के साथ अंतर सरकारी समझौते (आईजीए) किए। भारत और अमेरिका के बीच आईजीए पर 9 जुलाई, 2015 को हस्ताक्षर हुए। यह बताता है कि भारतीय एफआई भारतीय कर प्राधिकारियों को आवश्यक जानकारी देगा जो समय-समय पर अमेरिका को दी जाएगी। आईजीए के अंतर्गत, अमेरिका भी अमेरिका में भारतीयों की वित्तीय संपत्तियों की कुछ जानकारी भारत को देगा। भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षर किए गए आईजीए की मूल सामग्री यहां मौजूद है।
सूचना के स्वत: आदान-प्रदान पर नए वैश्विक मानक
विदेशी कर चोरी और कर प्राधिकारियों के बीच समन्वय के लिए विदेश में अघोषित राशि को बचाने और छुपाने की समस्या को नियंत्रित करने के लिए जी20 और ओईसीडी राष्ट्र सूचना के स्वत: आदान-प्रदान (एईओआई) पर एक साधारण सूचना मानक (सीआरएस) को साथ मिलकर विकसित करने में लगे हैं। एईओआई पर सीआरएस को 16 नवंबर, 2014 को ब्रिसबेन में जी20 नेताओं के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर बोलते हुए नए वैश्विक मानक का समर्थन किया चूंकि यह विदेशों में जमा की गई बेहिसाब धनराशि पर सूचना प्राप्त करने और अंतत: प्रत्यावर्तन में सहायक होगा। एईओआई पर सीआरएस के अनुसार "स्रोत" क्षेत्राधिकार के वित्तीय संस्थानों को अन्य देशों में "निवासी" खाताधारक के बारे में सूचना को एकत्रित करके अपने कर प्राधिकारियों को उसकी सूचना देना आवश्यक है, ऐसी सूचना वार्षिक आधार पर 'स्वत:' दी जाएगी। दी जाने वाली जानकारी न केवल व्यक्ति से संबंधित है बल्कि फर्जी कंपनियों और न्यास जिनके लाभार्थी स्वामित्व या हित "घरेलू" राष्ट्रों में है, से भी संबंधित है। आगे, सूचना को बैंक, निक्षेपागार संस्थान, सामूहिक निवेश साधन और बीमा कंपनियों सहित कई किस्मों के वित्तीय संस्थानों द्वारा वित्तीय उत्पादों की विस्तृत श्रेणी के लिए दी जानी चाहिए।
एईओआई पर सीआरएस को लागू करने की प्रतिबद्धता
विकासशील और नए वैश्विक मानक में नेवृत्व की भूमिका को ध्यान में रखते हुए, भारत सीआरएस को सबसे पहले अपनाने वाले कुछ देशों में से एक है और 2017 तक सूचना के स्वत: आदान-प्रदान के लिए प्रतिबद्ध था। भारत सरकार 3 जून 2015 को भी उक्त समयसीमा के अनुसार सूचना के आदान-प्रदान के लिए बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकारी समझौता (एमसीएए) से जुड़ी। 102 देशों ने नए वैश्विक मानकों के अनुसार सूचना के आदान-प्रदान की प्रतिबद्धता पर जोर दिया जिनमें से 2017 के अनुसार 49 देश थे, 2018 के अनुसार 51 और शेष 2019 से। 7 देश ऐसे है जो 2020 से इस समझौते से जुड़ेंगे। ओईसीडी के प्रयासों से प्रत्येक वर्ष नए क्षेत्राधिकार आदान-प्रदान के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं। प्रतिबद्ध न्यायक्षेत्रों की सूची यहां देखी जा सकती है।
भारत ने 111 न्यायक्षेत्रों से सूचना प्राप्त करने के लिए AEOI संबंध सक्रिय कर दिया है। सूची
'यहां' देखी जा सकती है।
भारत ने 86 न्यायक्षेत्रों के साथ सूचना भेजने के लिए AEOI संबंध सक्रिय कर दिया है जैसा कि
'यहाँ’ देखा जा सकता है:
एईओआई और आईजीए पर सीआरएस का लागू करने के लिए उठाए गए कदम
एईओआई और आईजीए पर सीआरएस और साथ ही अमेरिका के साथ आईजीए को लागू करने की हमारी प्रतिबद्धता को देखते हुए और अन्य देशों को सूचना देने को देखते हुए आवश्यक कानूनी परिवर्तन आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 285खक को संशोधित करके वित्त (सं.2) अधिनियम 2014 के माध्यम से किए गए हैं। आयकर नियम, 1962 को नियम 114च से 114ज को शामिल करके 2015 की अधिसूचना सं. 62 दिनांक 7 अगस्त, 2015 द्वारा संशोधित किया गया थी और प्रपत्र 61ख को प्रतिवेदी खातों के बारे में सूचना के रखरखाव और सूचित करने के लिए प्रतिवेदी वित्तीय संस्थान (आरएफआई) के लिए कानूनी आधार देने के लिए मुहैया कराई गई थी। इन नियमों को नियामकों और वित्तीय संस्थानों की चितांओं, जहां भी संभव हो, को दूर करने के लिए उनके साथ विचार-विमर्श करके विकसित किया गया है।
एक विस्तृत दिशानिर्देश नोट को आयकर नियम, 1962 के प्रपत्र 61ख और नियम 114च से 114ज में दी गई प्रतिवेदी अनिवार्यताओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संस्थानों, नियामकों और आयकर विभाग के अधिकारियों को दिशानिर्देश देने के लिए 31 अगस्त, 2015 को जारी किया गया था। दिशानिर्देश नोट जटिल प्रतिवेदी अनिवार्यताओं को स्पष्ट करने और अग्रिम दिशानिर्देश, जहां भी जरूरी हो, देने के लिए है। दिशानिर्देश नोट को उसके बाद कई बार अद्यतन किया गया और नवीनतम संस्करण नवंबर, 2016 में लाया गया।