2016 की परिपत्र सं. 42
एफ.नं. 142/11/2016-टीपीएल
भारत सरकार
वित्त मंत्रालय
राजस्व विभाग
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड
(टीपीएल प्रभाग)
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नर्इ दिल्ली, दिनांक : 23 दिसंबर, 2016
प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना, 2016 पर स्पष्टीकरण
प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना, 2016 (तत्पश्चात् योजना के तौर पर संदर्भित) को वित्त अधिनियम, 2016 के अध्याय X के तौर पर उन करदाताओं को अवसर देने के लिए निगमित किया गया था जिन्होंने योजना के प्रावधानों के अनुसार विवाद का निपटान और आगे आकर मुकद्मेबाजी की है। योजना के प्रावधानों को 2016 की परिपत्र सं. 33 के द्वारा स्पष्ट किया गया है। तत्पश्चात्, अग्रिम पूछताछ क्षेत्रीय प्राधिकारियों तथा अन्य हितधारकों से मांगी गर्इ है। केंद्र सरकार ने प्रश्नों पर विचार किया है और निम्नानुसार प्रश्न और उत्तर के रूप में इसे स्पष्ट करने का निर्णय लिया है :-
प्रश्न सं. 1 | ऐसे मामले हैं जहां निर्धारण अधिकारी (एओ) ने आयकर अधिनियम, 1961 (द एक्ट) की धारा 9 के अंर्तगत प्रावधानों के कारण वृद्धि की हो, जिसे बाद में पूर्वव्यापी रूप से संशोधित किया गया हो विशेषकर तकनीकी सेवाओं की रायल्टी तथा शुल्क के संबंध में। योजना के सामने निर्धारिती की मामले की क्या स्थिति होगी, जहां वृद्धि ऐसे पूर्वव्यापी संशोधन के समक्ष निर्धारण अधिकारी द्वारा किया गया है ? क्या मामले को पूर्वव्यापी संशोधन के परिणाम के तौर पर समझा जाएगा तथा तद्नुसार निर्धारिती योजना का लाभ उठाने के लिए योग्य होगा ? |
उत्तर : | वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 201 की उप-धारा (1) के वाक्यांश (छ) के अनुसार, 'निर्दिष्ट कर' एक कर शामिल है जो पूर्वप्रभावी प्रभाव से आयकर अधिनियम के लिए किए गए संशोधन द्वारा मान्यकृत होती है। इसलिए, एक मामला जहां वृद्धि ऐसे पूर्वव्यापी संशोधन के समक्ष निर्धारण अधिकारी द्वारा किया गया है और वृद्धि ऐसे संशोधन द्वारा मान्यकृत हुर्इ हो, योजना का लाभ लेने के लिए योग्य है बशर्ते कि ऐसी वृद्धि/कर के संबंध में विवाद 29.02.2016 के तौर पर लंबित है। |
प्रश्न सं. 2 : | ऐसे निर्धारिती भी हैं जो आयकर अधिनियम के पूर्वव्यापी संशोधन के संवैधानिक मान्यकरण के समक्ष न्यायालय में लिखित याचिका दाखिल की है। क्या निर्धारिती जिसने न्यायालय में ऐसे लेख को दाखिल किया है योजना के अंतर्गत लाभ लेने के बाद भी ऐसे संशोधन के संवैधानिक मान्यकरण से फिर भी प्रतिवाद कर सकते हैं? |
उत्तर | वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 203(3)(क) के अनुसार, जहाँ योजना के अंतर्गत घोषणा निर्दिष्ट कर के संबंध में हो और निर्दिष्ट कर के संबंध में किसी आदेश के समक्ष उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय के समक्ष कोर्इ लिखित याचिका दाखिल की गर्इ हो, वह न्यायालय की अनुमति के साथ ऐसी लिखित याचिका को निरस्त करेगा जहां भी आवश्यक हो और योजना के अंतर्गत दाखिल घोषणा के साथ ऐसी निरस्ती के प्रमाण को प्रस्तुत करेगा। इसलिए, यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि निर्धारिती योजना का लाभ उठाता है तो वह उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में पूर्वव्यापी संशोधन की संवैधानिक वैधता का प्रतिवाद नहीं कर सकता। |
प्रश्न सं. 3 | ऐसे मामले हैं जहां निर्धारिती की समान मुद्दों पर विभिन्न वर्षों के लिए अपील की विभिन्न स्थितियां हैं। ऐसी स्थिति में, यदि एक निर्धारिती विशेष वर्ष/वर्षों के लिए योजना के लाभ उठाता है, क्या राजस्व, वर्ष जिसमें निर्धारिती को राहत मिली हो, में निर्धारिती के समक्ष, इसकी अपील को निरस्त किया जा सकता है? यदि ऐसी स्थिति है तो, किस स्थिति में राजस्व में इसकी अपील को निरस्त किया जा सकता है? |
उत्तर : | 'कर बकाए' की स्थिति में, योजना उपलब्ध है केवल तभी यदि विवाद आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित है। इसलिए, राजस्व द्वारा अपील के निरस्ती का प्रश्न ऐसे मामलों में उत्पन्न नहीं होता। 'निर्दिष्ट कर' के संबंध में, वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 203(3) निर्दिष्ट करती है कि कथित योजना के लिए चुनाव करने से पहले घोषणाकर्ता को अपनी लंबित अपील अथवा लिखित याचिका को निरस्त करना होगा। यह भी निर्दिष्ट किया जाता है कि यदि जहां घोषणाकर्ता मध्यस्थता, समझौता अथवा बीच-बचाव की कार्यवाही के लिए नोटिस दिया हो अथवा तामील किया हो तो वह योजना के अंतर्गत घोषणा को दाखिल करने से पहले नोटिस अथवा दावे को निरस्त करेगा। योजना कभी भी राजस्व द्वारा किसी अपील अथवा कार्यवाही को निरस्त करने की बात नहीं करती। इसलिए, उन्हीं मुद्दों पर कुछ अन्य वर्षों में निर्धारिती द्वारा योजना के चुनाव के कारण राजस्व द्वारा अपील की निरस्ती का प्रश्न नहीं उठता। |
प्रश्न सं. 4 | क्या योजना के अंतर्गत कर भुगतान आर्इडीएस, 2016 के अंतर्गत स्वीकृतानुसार किश्तों में किये जाने के लिए स्वीकृत है ? |
उत्तर : | चूंकि, योजना के अंतर्गत भुगतान करने की तिथि स्वयं वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 204 में मुहैया करार्इ गर्इ है तो योजना के अंतर्गत कर भुगतान किश्तों में किया जाना स्वीकृत नहीं किया जा सकता। |
प्रश्न सं. 5 : | क्या निर्धारिती 'निर्दिष्ट कर' के संबंध में घोषणा करने के लिए योग्य है जहां विवाद अधिनियम की धारा 119 के अंतर्गत 28.08.2014 को सीबीडीटी द्वारा स्थापित समिति के समक्ष निर्धारण अधिकारी द्वारा दिए गए संदर्भ के रूप में 29.02.2016 के अनुसार लंबित था, लेकिन उसपर 'निर्दिष्ट कर' को निर्धारित करने का अंतिम आदेश 29.02.2016 को पारित किया गया था और इसके संबंध में अपील/रिट/मध्यस्थता/समझौता/बीच-बचाव आदि योजना के प्रारंभ होने से पहले अर्थात् 01.06.2016 को दाखिल किया था ? |
उत्तर : | योजना के प्रावधानों के अनुसार, एक घोषणाकर्ता 'निर्दिष्ट कर' के संबंध में घोषणा कर सकता है जिसके लिए एक विवाद 29.02.2016 के अनुसार लंबित था। 29.02.2016 के अनुसार लंबित विवाद आयकर अधिनियम अथवा संपत्ति कर अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित कर हेतु संदर्भित है जिसे निर्धारिती द्वारा विवादित किया गया है। उक्त संदर्भित मामले में, निर्दिष्ट कर को 29.02.2016 के पश्चात् एओ द्वारा निर्धारित किया गया है, इसलिए, 29.02.2016 के अनुसार ऐसे कर के संबंध में लंबित विवाद का प्रश्न नहीं उठता। इसलिए, वर्तमान मामले में निर्धारिती योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र नहीं है। |
प्रश्न सं. 6 : | क्या आयकर अधिनियम की धारा 271ग अथवा 271गक के अंतर्गत जुर्माना आदेश, जिसके लिए एक अपील आयकर आयुक्त (अपील) के पास लंबित है, योजना के अंतर्गत अंतनिर्विष्ट है ? |
उत्तर : | योजना के अनुसार, जुर्माना की स्थिति में 'कर बकाया' अंतिम रूप से निर्धारित कुल आय से जुड़ी है। चूंकि धारा 271ग अथवा 271गक के अंतर्गत जुर्माना आदेश निर्धारिती कार्यवाही से जुड़ा नहीं है, ऐसे आदेश योजना के अंतर्गत अंतनिर्विष्ट नहीं है। |
प्रशन सं. 7 | क्या मामले जिनमें, खोज के फलस्वरूप, अधिनियम की धारा 143(3) के अंतर्गत पूर्ण किए गए निर्धारण, योजना के लाभ के लिए योग्य होंगे ? |
उत्तर : | चूंकि खोज मामले योजना के लिए पात्र नहीं हैं, अधिनियम की धारा 153ख के साथ पठित धारा 143(3) के अंतर्गत खोज के परिणामस्वरूप किया गया मूल्यांकन योजना का लाभ लेने के लिए पात्र नहीं है। |
प्रश्न सं. 8 : | वित्त अधिनियम, 2016 की धारा 203 के वाक्यांश (5) आयकर अधिनियम अथवा संपत्ति कर अधिनियम, जो भी स्थिति हो, के अंतर्गत 'परिणाम' के समझे गए पुन: प्रवर्तन हेतु संदर्भित है, जिसके अंतर्गत घोषणाकर्ता के समक्ष कार्यवाही लंबित है अथवा थी। 'कार्यवाही' के समझे गए पुन: प्रवर्तन हेतु कोर्इ स्पष्ट संदर्भ नहीं है। कृपया स्पष्ट करें ? |
उत्तर : | धारा 203 का वाक्यांश (5) मुहैया कराता है कि यदि जहां इसमें निर्दिष्ट शर्तें पूरी नहीं होती, यह परिकल्पित होगी जैसे कि ने योजना के अंतर्गत घोषणा कभी नहीं की गर्इ थी, इसलिए, घोषणा की निरस्ती की स्थिति में, 204(1) के अंतर्गत प्रमाणपत्र के निगर्मन से पहले निर्धारिती के समक्ष लंबित कार्यवाही पुनजीर्वित होगी। |
(डा. टी. एस. मपवाल)
अवर सचिव, भारत सरकार
निम्न को प्रति :
1. अध्यक्ष, सदस्य और अवर सचिव तथा उससे ऊपर के पद के सीबीडीटी में अन्य समस्त अधिकारी
2. समस्त प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त/प्रधान आयकर महानिदेशक - अपने क्षेत्रों/प्रभारों में सभी कार्यालयों के बीच वितरित करने के अनुरोध के साथ
3. प्रधान आयकर महानिदेशक(पद्धति)/प्रधान आयकर महानिदेशक (सतर्कता)/प्रधान आयकर महानिदेशक (प्रशा.)/प्रधान महानिदेशक (एनएडीटी)/प्रधान आयकर महानिदेशक (एल&आर)
4. आयकर आयुक्त (एम&टीपी), सीबीडीटी
5. विभागीय वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए वेब मैनेजर