2016 की परिपत्र सं. 33

 

एफ. नं. 142/11/2016 टीपीएल

भारत सरकार

वित्त मंत्रालय

राजस्व विभाग

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड

(टीपीएल प्रभाग)

 

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दिनांक 12 सितंबर, 2016

 

प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना, 2016 पर स्पष्टीकरण

 

प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना, 2016 (तत्पश्चात् 'योजना' के तौर पर संदर्भित) वित्त अधिनियम, 2016 ( तत्पश्चात् 'योजना' के तौर पर संदर्भित) के अध्याय X के तौर पर निगमित उन करदाताओं को एक अवसर मुहैया कराता है जो मुकद्मेबजी के अंतर्गत आगे आए तथा योजना के प्रावधानों के अनुसार विवाद को सुलझाया। प्रत्यक्ष कर विवाद समाधान योजना नियम, 2016 (इसके पश्चात् 'नियम' के तौर पर संदर्भित) को अधिसूचित किया गया है। हितधारकों से प्राप्त की गर्इ योजना के पूछताछ के संबंध में योजना के कुछ प्रावधानों पर अग्रिम स्पष्टीकरण की मांग की गर्इ है। केंद्र सरकार ने पूछताछ पर विचार किया है तथा निम्नानुसार प्रश्न तथा उत्तर के रूप में इसे स्पष्ट करने का निर्णय लिया है :—

प्रश्न सं. 1 : यदि अपील 29.02.2016 के अनुसार आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित थी। हालांकि, योजना के अंतर्गत घोषणा करने से पहले, अपील आयकर आयुक्त (अपील) द्वारा निपटा दी जाती है तो निर्धारिती योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र है ?
उत्तर : ऐसे मामले में जहां अपील 29.02.2016 के अनुसार आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित थी तथा आयकर आयुक्त (अपील) ने घोषणा करने से पहले इसे पहले से निपटा दिया हो तो योजना के अंतर्गत घोषणा दाखिल नहीं की जा सकती।
प्रश्न सं. 2 : यदि जहां अपीलार्थी ने योजना के अंतर्गत घोषणा दाखिल की हो अथवा आयकर आयुक्त (अपील) को योजना के अंतर्गत घोषणा दाखिल करने के लिए अपनी इरादे को संप्रेषित किया हो तो क्या आयकर आयुक्त (अपील) निपटान का निपटान करेंगे ?
उत्तर : आयकर आयुक्त (अपील) को पत्र एफ. नं. 279/विविध/एम-30/2016 दिनांक 30.03.2016 के मार्फत निर्देश दिया गया है कि अपील जहां अपीलार्थी ने योजना का लाभ उठाने के लिए अपनी इच्छा को प्रकट किया हो, लंबित के तौर पर रखी जानी चाहिए। आगे, एफ. नं. 279/विविध/एम-74/2016-आर्इटीजे दिनांक 19.07.2016 के द्वारा, नामित प्राधिकारी को संबंधित आयकर आयुक्त (अपील) से समर्थन प्राप्त करने के लिए निर्देश दिया गया है कि अपील जिसके लिए घोषणा दाखिल की थी वह 29.02.2016 को लंबित थी तथा अभी तक निपटान नहीं किया गया है। इसलिए, यदि जहां योजना के अंतर्गत घोषणा की गर्इ हो अथवा अपीलार्थी द्वारा योजना का लाभ उठाया गया हो तो आयकर आयुक्त (अपील) लंबित अपील का निपटान नहीं करेंगे।
प्रश्न सं. 3 : परिमाण के समक्ष अपील साथ ही साथ धारा 271(1)(ग) के अंतर्गत जुर्माना आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित है। यदि निर्धारिती योजना के अंतर्गत अवधिगत अपील के संबंध में घोषणा को दाखिल करता है तो जुर्माने की अपील का क्या भविष्य होगा ?
उत्तर : योजना के अनुसार, उन मामलों में जहां अवधिगत अपील रू. 10 लाख से अधिक होती है तो घोषणाकर्ता को विवादित कर, ब्याज तथा उदग्रहण न्यूनतम जुर्माने का 25 प्रतिशत देना होगा। आगे, उन मामलों में जहां अवधिगत अपील में विवादित कर रू. 10 लाख से अधिक नहीं होती तो घोषणाकर्ता को केवल विवादित कर व ब्याज देना आपेक्षित है तथा देययोग्य जुर्माने के संबंध में किसी राशि के भुगतान के लिए कोर्इ आवश्यकता नहीं है।
  अधिनियम की धारा 205(ख) इस सीमा तक घोषणा में आने वाले कर बकाए के संबंध में आयकर अथवा संपत्ति कर अधिनियम के अंतर्गत आरोपण अथवा छूट अथवा जुर्माने से प्रतिरक्षा मुहैया कराते हैं कि जुर्माना अधिनियम की धारा 202(झ) में संदर्भित जुर्माने की राशि से अधिक है। इसलिए, दोनों स्थितियों में (अर्थात् चाहे अवधिगत अपील में विवादित कर रू. 10 लाख से अधिक हो अथवा नहीं), जहां योजना के अंतर्गत एक वैध घोषणा अवधिगत अपील के संबंध में की जाती हो, आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित अवधिगत जुर्माने से संबंधित आयकर अधिनियम की धारा 271(1)(ग) के अंतर्गत लगाए गए जुर्माने के समक्ष अपील निरस्त होने के तौर पर  समझी जाएगी तथा जुर्माना अथवा जुर्माने की शेष राशि, जो भी स्थिति हो, छूट के तौर पर समझी जाएगी।
प्रश्न सं. 4 : धारा 203(2) व्याख्या करता है कि कर बकाए के संबंध में घोषणा के परिणामस्वरूप आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित अपील निरस्त होने के तौर पर समझी जाएगी। किसी समय प्रावधान प्रभावी होगा ?
उत्तर : आयुक्त (अपील) के साथ लंबित अपील उस तिथि से निरस्त होना समझा जाएगा जिस पर धारा 204(1) के अंतर्गत प्रमाणपत्र नामित प्राधिकारी द्वारा जारी होती है।
प्रश्न सं. 5 : निर्धारण में किया गया संयोजन का हानि को कम करने पर प्रभावी होगा लेकिन जुर्माने को आयकर अधिनियम की धारा 271(1)(ग) के अंतर्गत प्रांरभ किया गया है। क्या निर्धारिती योजना का लाभ उठाने के लिए पात्र है ?
उत्तर : योजना उन मामलों में प्रयोज्य है जहां कर विवादित हो। चूंकि हानि को कम करने की स्थिति में, कोर्इ विवादित कर नहीं है इसलिए निर्धारिती योजना का लाभ लेने का पात्र नहीं है। हालांकि, यदि एक आवधिक हानि में परिवर्तन के परिणामस्वरूप तैयार जुर्माना आदेश के संबंध में आयुक्त (अपील) के समक्ष अपील लंबित हो तो घोषणाकर्ता ऐसे जुर्माना आदेश के संबंध में घोषणा दाखिल कर सकता है।
प्रश्न सं. 6 : जहां अपील को दाखिल करने के लिए आयकर अधिनियम की धारा 249 के अंतर्गत निर्दिष्ट समयावधि 29.02.2016 को समाप्त होती है। निर्धारिती अपील को दाखिल करने में देरी को मांफ करने के अनुरोध के साथ 05.04.2016 को इस मामले में एक अपील दाखिल करता है। आयुक्त (अपील) अपील को दाखिल करने में देरी को मांफ करता है। क्या यह योजना ऐसे मामले में निर्धारिती हेतु उपलब्ध है ?
उत्तर : मांफ करने के मामले में, एक घोषणाकर्ता योजना के लिए पात्र होगा यदि :
  (i) आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 249 के अंतर्गत अपील को दाखिल करने के लिए समय सीमा 29.02.2016 को अथवा उससे पहले परिसीमन द्वारा वर्जित हो गर्इ है;
  (ii) अपील तथा मांफी आवदेन को 01.06.2016 से पहले आयुक्त (अपील) के समक्ष दाखिल किया गया हो;
  (iii) ऐसी अपील को दाखिल करने में देरी आयुक्त (अपील) द्वारा मांफ की गर्इ हो; तथा
  इसलिए, वर्तमान मामले में योजना निर्धारिती हेतु उपलब्ध है।
प्रश्न सं. 7 : यदि आयुक्त (अपील) ने संवर्धन की सूचना दी हो। ऐसे मामले में वह योजना के लाभ के लिए पात्र है ?
उत्तर : ऐसे मामले में जहां परिवर्धन की सूचना योजना के प्रारंभ होने की तिथि अर्थात् 01.06.2016 से पहले घोषणाकर्ता द्वारा प्रात्त किया गया हो वह योजना के लिए पात्र नहीं होगा
प्रश्न सं. 8 : वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान एक सर्वेक्षण किया गया। निर्धारण वर्ष 2011-12 से संबधित अभियोगी दस्तावेज प्राप्त हुआ तथा कथित वर्ष के लिए आयकर अधिनियम की धारा 147 के अंतर्गत निर्धारण इन दस्तावेजों के आधार पर किया गया था तथा अन्य पूछताछ की गर्इ। निर्धारण वर्ष 2011-12, जो आयुक्त अपील के पास लंबित है, के लिए निर्धारिती मामले योजना के लिए पात्र है ?
उत्तर : अधिनियम की धारा 208 के अनुसार, योजना उस निर्धारण अथवा पुर्ननिर्धारण के लिए उपलब्ध नहीं होगी जिस पर आयकर अधिनियम की धारा 133क के अंतर्गत किए गए सर्वेक्षण पर प्रभाव है। इसलिए, वर्तमान मामले में, निर्धारण वर्ष 2011-12 योजना के अंतर्गत पात्र नहीं है।
प्रश्न सं. 9 : यदि धारा 271(1)(ग) के अंतर्गत जुर्माने आदेश के समक्ष अपील आयुक्त (अपील) के समक्ष लंबित हो तथा अवधिगत संवर्धन के समक्ष अपील उच्चतर अपीलार्थी प्राधिकारी के साथ लंबित है। योजना के अनुसार, देययोग्य राशि देययोग्य न्यूनतम जुर्माने का 25 प्रतिशत है तथा कुल आय पर देययोग्य कर तथा ब्याज आखिरकार निर्धारित है। योजना के अंतर्गत देययोग्य अवधिगत कर, ब्याज तथा जुर्माने की गणना के लिए "कुल आय आखिरकार निर्धारित है" के तौर पर क्या लगया जाना चाहिए ? आगे, घोषणा को दाखिल करने के अनुवर्ती पारित अपीलार्थी आदेश के परिणाम स्वरूप आवधिक संवर्धन में किसी परिवर्तन को क्या प्रभावी करेगा ?
उत्तर : धारा 271(1)(ग) के अंतर्गत जुर्माने से संबंधित अपील की स्थिति में, योजना के अंतर्गत देययोग्य राशि जुर्माने का 25 प्रतिशत है तथा साथ ही कुल आय पर देययोग्य आय तथा ब्याज को आखिरकार निर्धारित किया गया है। इस उद्देश्य के लिए अंतिम रूप से निर्धारित कुल आय कुल आय होगी जैसा योजना के अंतर्गत किसी परिवर्तन की तिथि को अथवा उससे पहले पारित अंतिम अपीलार्थी आदेश को प्रभावी करते हुए निर्धारित हुर्इ हो।
  घोषणा की तिथि के अनुवर्ती पारित किसी अनुवर्ती आदेश के परिणामस्वरूप कुल आय हेतु कोर्इ परिवर्तन योजना के अंतर्गत देययोग्य जुर्माने की राशि की गणना के उद्देश्य के लिए उपेक्षित होगी।
प्रश्न सं. 10 : जहां कुछ आय को दो भिन्न व्यक्तियों के हाथों कर हेतु प्रभारित किया गया हो अथवा जहां इसे दो भिन्न निर्धारण वर्षों में उसी व्यक्ति की स्थिति में कर हेतु प्रभारित किया गया हो, एक मूल आधार पर तथा दूसरा रक्षात्मक आधार पर, क्या घोषणाकर्ता अथवा अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए दोनों स्वतंत्र तथा सुरक्षात्मक परिवर्धन के संबंध में लाभ उठा सकते हैं ?
उत्तर : निर्धारितियों के मामलों में घोषणा अथवा निर्धारण वर्षों को करने की सलाह दी जाती है जहां परिवर्धन मूल आधार पर किया जाता है। सक्रिय मांग वसूली के अधीन नहीं है जबतक यह अंतिम रूप से कायम रहती हो। एक बार मूल विषय में घोषणा होने अथवा वर्ष के स्वीकृत होने पर, रक्षात्मक मामले/वर्ष में कर बकाया अधिक समय तक वैध नहीं होगा तथा सामान्य अवधि में उपयुक्त आदेश द्वारा संशोधित होगा।
प्रश्न सं. 11 : एक निर्धारण वर्ष के लिए योजना के अंतर्गत घोषणा को दाखिल कर, क्या करदाता अन्य निर्धारण वर्ष में उसी मुद्दे पर अपील के अपने अधिकार को आगे कर सकता है ?
उत्तर : नहीं। योजना के अंतर्गत आदेश किसी न्यायिक मुद्दे का निर्णय नहीं करता। यह केवल कर बकाया अथवा निर्दिष्ट कर, जो भी स्थिति हो, के संदर्भ में कर के अंतर्गत देययोग्य राशि को निर्धारित करता है। इसे केवल मामले जिसके लिए घोषणा की गर्इ है, के संबंध में विवाद समाधान तंत्र के लिए ही मुहैया कराया गया है।
प्रश्न सं. 12. घोषणाकर्ता ने बैंक को प्रस्तुत चेक के गैर-प्राप्ति सहित किसी कारण के लिए धारा 204(1) के अंतर्गत आदेश के 30 दिनों के भीतर योजना के अंतर्गत देययोग्य कर नहीं दिया हो तो घोषणाकर्ता योजना के अंतर्गत राहत के लिए पात्र होगा ?
उत्तर : नहीं। योजना के अंतर्गत कर योजना में निर्दिष्टानुसार नियत तिथि को अथवा उससे पहले सरकार को दिया जाना चाहिए। निर्धारितियों से समय से कर का भुगतान करने की सलाह दी जाती है जिससे योजना के अंतर्गत राहत का लाभ लिया जा सके।
प्रश्न सं. 13 : प्रपत्र - 3 में जारी प्रमाणपत्र के अनुसार घोषणाकर्ता द्वारा किए गए भुगतान की सूचना के लिए कोर्इ समय सीमा निर्दिष्ट नहीं है। आगे, नामित प्राधिकारियों द्वारा अधिनियम की धारा 204(2) के अंतर्गत आदेशक के निगर्मन के लिए कोर्इ निर्दिष्ट समय सीमा नहीं है। कृपया स्पष्ट करें ?
उत्तर : घोषणाकर्ता इसके प्रमाण के साथ भुगतान के तथ्य को उस तिथि से एक महीने के भीतर नामित प्राधिकारी को सूचित करेगा जब योजना के अंतर्गत भुगतान करने के लिए समय सीमा समाप्त होती है। नामित प्राधिकारी उस माह की समाप्ति से एक महीने के अंदर अधिनियम की धारा 204(2) के अंतर्गत आदेश जारी करेंगे जिसमें भुगतान से संबंधित सूचना घोषणाकर्ता द्वारा प्रपत्र - 4 में प्राप्त होती है।
प्रश्न सं. 14 : क्या प्रतिदाय उन मामलों में दिया जाएगा जहां निर्धारिती ने पूर्ण अथवा आंशिक जुर्माने का भुगतान पहले ही किया हो जबकि अपील अभी भी आयकर आयुक्त (अपील) के स्तर पर लंबित हो तथा निर्धारिती ने इस योजना का चुनाव किया हो ?
उत्तर : योजना की धारा 202(1)(ख) के अनुसार, जुर्माने से संबंधित लंबित अपील की स्थिति में, अंतिम रूप से निर्धारित कुल आय पर कर तथा ब्याज सहित देययोग्य न्यूनतम जुर्माने का 25 प्रतिशत का भुगतान करना आपेक्षित है। इसलिए, यदि एक निर्धारिती जिसने पहले से धारा 202(1)(ख) में संदर्भित राशि के अतिरिक्त राशि का भुगतान कर दिया हो, वह पहले से किए गए भुगतान के अतिरिक्त प्रतिदाय के लिए पात्र होगा। हालांकि, घोषणाकर्ता आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 244क के अंतर्गत ऐसे प्रतिदाय पर ब्याज का दावा करने के लिए पात्र नहीं होगा।

(डा. टी. एस. मपवाल)

अवर सचिव, भारत सरकार

 

निम्न को प्रति :—

  1. पीएस से एफएम/ओएसडी से एफएम/ओएसडी से एमओएस(आर)

  2. पीएस से सचिव (राजस्व)

  3. अध्यक्ष, सदस्य तथा अवर सचिव तथा उससे ऊपर के पद के केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड में समस्त अधिकारी

  4. समस्त प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त/प्रधान आयकर महानिदेशक - अपने क्षेत्रों/प्रभारों में समस्त अधिकारियों के बीच बांटने के अनुरोध के साथ

  5. प्रधान आयकर महानिदेशक(पद्धति)/प्रधान आयकर महानिदेशक (सर्तकता)/प्रधान आयकर महानिदेशक(प्रशा.)/प्रधान महानिदेशक (राष्ट्रीय प्रत्यक्ष कर अकादमी)/प्रधान आयकर महानिदेशक(एलएंडआर)

  6. आयकर आयुक्त(एमएंडटीपी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड

  7. विभागीय वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए वैब मैनेजर