कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ से होने वाली आय से सुसंगत कतिपय पदों की परिभाषा

43. धारा 28 से धारा 41 तक में और इस धारा में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो11

12(1) ‘‘वास्तविक लागत’’ से निर्धारिती को आस्तियों की ऐसी वास्तविक लागत11 अभिप्रेत है जो कि वह उसकी लागत के उस भाग को, यदि कोर्इ हो, घटा कर आए जिसकी पूर्ति11 किसी अन्य व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: की गर्इ हो :

13[परन्तु जहां किसी आस्ति का, जो ऐसी मोटरकार है और जिसका 31 मार्च, 1967 के पश्चात् 14[किंतु 1 मार्च, 1975 के पूर्व] निर्धारिती द्वारा अर्जन किया जाता है और जिसका प्रयोग पर्यटकों के लिए किराए पर चलाए जाने वाले कारबार में से अन्यथा किया जाता है, वास्तविक लागत पच्चीस हजार रुपए से अधिक है, वहां वास्तविक लागत के उस आधिक्य की जो इस रकम से ऊपर हो उपेक्षा कर दी जाएगी, तथा उसकी वास्तविक लागत के बारे में यह माना जाएगा कि वह पच्चीस हजार रुपए है।]

स्पष्टीकरण 1.–जहां किसी आस्ति का प्रयोग किसी कारबार से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उसका प्रयोग बंद हो जाने के पश्चात् उस कारबार में किया जाता है और उस आस्ति की बाबत धारा 32 की 15[उपधारा (1) के खंड (ii)] के अधीन कटौती की जानी है, वहां निर्धारिती की उस आस्ति की वास्तविक लागत निर्धारिती की वह वास्तविक लागत होगी जो उसमें से धारा 35 की उपधारा (1) के खंड (iv) के अधीन या भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) के किसी तत्समान उपबंध के अधीन अनुज्ञात किसी कटौती की रकम को घटा कर आए।

16[स्पष्टीकरण 2.–जहां निर्धारिती द्वारा आस्ति, दान या विरासत से अर्जित की जाती है वहां निर्धारिती को आस्ति की वास्तविक लागत पूर्ववर्ती स्वामी की वास्तविक लागत होगी और उसमें से निम्नलिखित घटा दिया जाएगा—

() इस अधिनियम और भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन, 1 अप्रैल, 1988 के पूर्व प्रारम्भ होने वाले निर्धारण वर्ष से सुसंगत किसी पूर्ववर्ष की बाबत, वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण की रकम; और

() अवक्षयण की वह रकम जो 1 अप्रैल, 1988 को या उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले किसी निर्धारण वर्ष के लिए निर्धारिती को अनुज्ञात होती, मानो वह आस्ति सुसंगत आस्ति समूह की एकमात्र आस्ति हो।]

स्पष्टीकरण 3.–जहां निर्धारिती द्वारा अर्जन की तारीख से पूर्व आस्तियों का प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपने कारबार या वृत्ति के प्रयोजनों के लिए किसी समय किया गया था और 17[निर्धारण] अधिकारी का समाधान हो जाता है कि निर्धारिती को ऐसी आस्तियों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अन्तरण का मुख्य प्रयोजन (वर्धित लागत के आधार पर अवक्षयण का दावा करके) आय-कर के दायित्व को घटाना था, वहां निर्धारिती की वास्तविक लागत ऐसी रकम होगी जैसी मामले की सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, 17[निर्धारण] अधिकारी, 18[संयुक्त आयुक्त] की पूर्व अनुमति से अवधारित करें।

19[स्पष्टीकरण 4.–जहां कोर्इ आस्ति जो कभी निर्धारिती की थी और जिसका प्रयोग उसके द्वारा अपने कारबार या वृत्ति के प्रयोजनों के लिए किया गया था और तत्पश्चात् अन्तरण के कारण या अन्यथा उसकी संपत्ति नहीं रह गर्इ, उसके द्वारा पुन: अर्जित की जाती है, वहां निर्धारिती की वास्तविक लागत, निम्नलिखित में से जो भी कम हो, वह होगी—

(i) आस्ति के प्रथमत: अर्जित किए जाने के समय उसकी वास्तविक लागत, जिसमें से निम्नलिखित घटा दिया जाएगा—

() इस अधिनियम के अधीन या भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) के तत्समान उपबंधों के अधीन, 1 अप्रैल, 1988 के पूर्व प्रारम्भ होने वाले निर्धारण वर्ष से सुसंगत किसी पूर्ववर्ष की बाबत, उसे वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण की रकम; और

() अवक्षयण की वह रकम जो 1 अप्रैल, 1988 को या उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले किसी निर्धारण वर्ष के लिए निर्धारिती को अनुज्ञेय होती, मानो वह आस्ति सुसंगत आस्ति समूह की एकमात्र आस्ति हो; अथवा

(ii) वह वास्तविक कीमत जिस पर वह आस्ति उसके द्वारा पुन: अर्जित की जाती है,

इनमें से जो भी कम हो।]

20[स्पष्टीकरण 4क.—जहां निर्धारिती द्वारा (जिसे इसमं आगे प्रथम वर्णित व्यक्ति कहा गया है) अर्जन की तारीख के पूर्व आस्तियों का प्रयोग किसी समय किसी अन्य व्यक्ति द्वारा (जिसे इसमें आगे दूसरा वर्णित व्यक्ति कहा गया है) अपने कारबार या वृत्ति के प्रयोजनों के लिए किया गया था और दूसरे वर्णित व्यक्ति की दशा में ऐसी आस्तियों की बाबत अवक्षयण मोक का दावा किया गया है और ऐसा व्यक्ति प्रथम वर्णित व्यक्ति से आस्तियां पट्टे, भाड़े पर या अन्यथा अर्जित कर लेता है तो स्पष्टीकरण 3 में किसी बात के होते हुए भी, प्रथम वर्णित व्यक्ति की दशा में, अंतरित आस्तियों की वास्तविक लागत वही होगी जो दूसरे वर्णित व्यक्ति द्वारा उक्त आस्तियों के अंतरण के समय उसका अवलिखित मूल्य था।]

स्पष्टीकरण 5.—जहां कोर्इ ऐसा भवन, जो पहले निर्धारिती की संपत्ति था, 28 फरवरी, 1946 के पश्चात् कारबार या वृत्ति के प्रयोजन के लिए प्रयोग में लाया जाता है, वहां निर्धारिती की वास्तविक लागत निर्धारिती के भवन की वह वास्तविक लागत होगी जो उसमें से इतनी रकम को घटाकर आए जितनी उस तारीख को प्रवृत्त दर पर परिकलित उस अवक्षयण के बराबर है जो अनुज्ञेय होता यदि उस भवन का पूर्वोक्त प्रयोजन के लिए प्रयोग निर्धारिती द्वारा उसके अर्जन की तारीख से ही किया गया होता।

21[स्पष्टीकरण 6.—जब कोर्इ पूंजी आस्ति किसी नियंत्री कंपनी द्वारा अपनी समनुषंगी कंपनी को या किसी समनुषंगी कंपनी द्वारा अपनी नियंत्री कंपनी को अंतरित की जाती है तब यदि धारा 47 के, यथास्थिति, खंड (iv) या खंड (v) की शर्तें पूरी हो जाती हैं तो अंतरिती कम्पनी को अंतरित पूंजी आस्ति की वास्तविक लागत वही मानी जाएगी जो तब होती जबकि अंतरक कंपनी अपने कारबार के प्रयोजनों के लिए पूंजी आस्ति को धारण किए रहती है।]

22[स्पष्टीकरण 7.—जहां समामेलन की किसी स्कीम में कर्इ पूंजी आस्ति समामेलक कंपनी द्वारा समामेलित कंपनी को अंतरित की जाती है और समामेलित कंपनी एक भारतीय कंपनी है, वहां समामेलित कंपनी को अंतरित पूंजी आस्ति की वास्तविक लागत वही मानी जाएगी जो तब होती जब कि समामेलक कंपनी स्वयं अपने कारबार के प्रयोजनों के लिए पूंजी आस्ति को धारण किए रहती।]

23[स्पष्टीकरण 7क.—जहां किसी अविलयन में कोर्इ पूंजी आस्ति अविलयित कंपनी द्वारा परिणामी कंपनी को अंतरित की जाती है और परिणामी कंपनी भारतीय कंपनी है वहां परिणामी कंपनी को अंतरित पूंजी आस्ति पर वास्तविक लागत को उसी रूप में लिया जाएगा जैसे वह उस समय होती यदि अविलयित कंपनी अपने कारबार के प्रयोजन के लिए पूंजी आस्ति को धारित करती रहती :

परंतु ऐसी वास्तविक लागत अविलयित कंपनी के पास ऐसी पूंजी आस्ति की अवलिखित मूल्य से अधिक नहीं होगी।]

24[स्पष्टीकरण 8.—शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां किसी आस्ति के अर्जन के संबंध में कोर्इ रकम ब्याज के रूप में संदत्त की गर्इ है या संदेय है वहां ऐसी रकम में से उतनी, जितनी ऐसी आस्ति को प्रथम प्रयोग में लाए जाने के पश्चात् किसी अवधि से संबंधित की जा सकती है, ऐसी आस्ति की वास्तविक लागत में शामिल नहीं होगी और उसमें कभी शामिल नहीं समझी जाएगी।]

25[स्पष्टीकरण 9.—शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि जहां कोर्इ आस्ति निर्धारिती द्वारा 1 मार्च, 1994 को या उसके पश्चात् अर्जित की जाए या की गर्इ है वहां आस्ति की वास्तविक लागत में से सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 (1975 का 51) की धारा 3 के अधीन उद्ग्रहणीय उत्पाद शुल्क की राशि या अतिरिक्त शुल्क की राशि घटा दी जाएगी जिसकी बाबत क्रेडिट की मांग केंद्रीय उत्पाद शुल्क नियम, 1944 के अधीन की गर्इ है और अनुज्ञात की गर्इ है।]

26[स्पष्टीकरण 10.—जहां निर्धारिती द्वारा अर्जित आस्ति की लागत का एक भाग केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी विधि के अधीन किसी प्राधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्षत: या परोक्षत: सहायकी या अनुदान या प्रतिपूर्ति के रूप में पूरा किया जाता है (जो भी कहा जाए) वहां उतनी लागत, जितनी ऐसी सहायकी या अनुदान या प्रतिपूर्ति से संबंधित की जा सकती है, निर्धारिती के लिए आस्ति की वास्तविक लागत में शामिल की जाएगी :

परन्तु जहां ऐसी सहायकी या अनुदान या प्रतिपूर्ति ऐसी प्रकृति की है कि वह अर्जित आस्ति से सीधे संबंधित नहीं हो सकती वहां उतनी रकम जितनी कुल सहायकी या प्रतिपूर्ति या अनुदान के उस अनुपात में है जो ऐसी आस्ति का उन सब आस्तियों के अनुपात में है जिनकी बाबत या जिनके संबंध में सहायकी, या अनुदान या प्रतिपूर्ति इस प्रकार प्राप्त की जाए, निर्धारिती के लिए आस्ति की वास्तविक लागत में शामिल नहीं की जाएगी।]

27[स्पष्टीकरण 11.—जहां कोर्इ आस्ति जो किसी ऐसे निर्धारिती द्वारा जो अनिवासी है, भारत के बाहर अर्जित की जाती है उसके द्वारा भारत में लार्इ जाती है और अपने कारबार या वृत्ति के प्रयोजन के लिए उपयोग में लार्इ जाती है वहां निर्धारिती को आस्ति की वास्तविक लागत निर्धारिती के लिए वास्तविक लागत वह होगी जो प्रवृत्त दर पर परिकलित अवक्षयण की रकम के बराबर रकम को घटाकर आए जो तब अनुज्ञेय होती जब वह आस्ति निर्धारिती द्वारा उसके अर्जन की तारीख से उक्त प्रयोजन के लिए भारत में उपयोग में लार्इ जाती।]

28[स्पष्टीकरण 12.—जहां कोर्इ पूंजी आस्ति भारत में निर्धारिती द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) की धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा अनुमोदित मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज के निगमीकरण हेतु किसी स्कीम के अधीन अर्जित की जाती है, वहां उक्त आस्ति की वास्तविक कीमत वह रकम समझी जाएगी जो, यदि ऐसा निगमीकरण नहीं हुआ होता तो, वास्तविक कीमत के रूप में मानी गर्इ होती।]

28क[स्पष्टीकरण 13-ऐसी किसी पूंजी आस्ति के वास्तविक खर्च को, जिसके संबंध में धारा 35कघ के अधीन कटौती अनुज्ञात की गर्इ है या अनुज्ञेय है, निम्नलिखित की दशा में "शून्य" माना जाएगा,-

() ऐसे निर्धारिती की दशा में; और

() किसी अन्य दशा में, यदि पूंजी आस्ति,-

(i) दान या विल या अप्रतिसंहरणीय न्यास के रूप में;

(ii) कंपनी के समापन पर किसी वितरण में; और

(iii) अंतरण की ऐसी किसी पद्धति द्वारा, जो धारा 47 के खंड (i), खंड (iv), खंड (v), खंड (vi), खंड (viख), 28ख[खंड (xiii), खंड (xiiiख) और खंड (xiv)] में निर्दिष्ट है,

अर्जित या प्राप्त की गर्इ है;]

(2) ‘‘संदत्त’’ से अभिप्रेत है वस्तुत: संदत्त29 अथवा लेखाकर्म की उस पद्धति के अनुसार उपगत जिसके आधार पर ‘‘कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ’’ शीर्ष के अधीन लाभ या अभिलाभ संगणित किए जाते हैं ;

30(3) ‘‘संयंत्र‘‘31 के अंतर्गत कारबार या वृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाए गए पोत, यान, पुस्तकें,31 वैज्ञानिक साधित्र और शल्य उपस्कर भी हैं 32[किन्तु चाय के झाड़ या पशुधन 33[या भवन या फर्नीचर और फिटिंग] उसमें शामिल नहीं हैं];

(4) 34[(i) ‘‘वैज्ञानिक अनुसंधान’’ से प्राकृतिक या अनुप्रायोगिक (एप्लाइड) विज्ञान के क्षेत्रों में ज्ञान बढ़ाने के क्रियाकलाप अभिप्रेत है; जिसके अंतर्गत कृषि, पशुपालन या मत्स्य उद्योग भी है;]

(ii) वैज्ञानिक अनुसंधान पर उपगत व्यय के प्रति निर्देशों के अंतर्गत वे सब व्यय भी हैं जो वैज्ञानिक अनुसंधान चलाने के या उससे चलाने के लिए सुविधाओं का प्रबंध करने के लिए उपगत किए जाते हैं किंतु उनके अंतर्गत ऐसे कोर्इ व्यय नहीं हैं जो वैज्ञानिक अनुसंधान में या उससे उत्पन्न होने वाले अधिकारों के अर्जन में किए गए हैं;

(iii) कारबार या कारबार के किसी वर्ग से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रति निर्देशों के अन्तर्गत—

() कोर्इ ऐसा वैज्ञानिक अनुसंधान भी है, जो यथास्थिति, उस कारबार या उस वर्ग के सब कारबारों का विस्तार करे या उसे सुकर बनाए;

() चिकित्सीय प्रकृति का कोर्इ ऐसा वैज्ञानिक अनुसंधान भी है जो यथास्थिति, उस कारबार या उस वर्ग के सब कारबारों में नियोजित कर्मकारों के कल्याण से विशेष संबंध रखता है;

35(5) 36’’सट्टेवाला संव्यवहार’’37 से ऐसा संव्यवहार अभिप्रेत है जिसमें किसी ऐसी वस्तु के, जिसके अंतर्गत स्टाक और शेयर भी है, क्रय या विक्रय की संविदा37, कालिकत: या अंतत: वस्तु या स्क्रिप के वास्तविक परिदान37 या अंतरण के द्वारा तय37 किए जाने से अन्यथा तय की जाती है:

परन्तु इस खंड के प्रयोजनों के लिए निम्नलिखित को सट्टेवाला संव्यवहार नहीं समझा जाएगा—

() किसी व्यक्ति द्वारा अपने विनिर्माण या वाणिज्यिक कारबार के अनुक्रम में की गर्इ कच्ची सामग्री या वाणिज्या की बाबत संविदा जो उसके द्वारा विनिर्मित माल के या उसके द्वारा बेचे गए वाणिज्या के वास्तविक परिदान के लिए उसकी संविदाओं की बाबत कीमतों के भारी उतार-चढ़ाव से होने वाली हानि से बचने के लिए हो; या

() स्टाकों और शेयरों की बाबत संविदा जो उनके किसी व्यवहारी या विनिधानकर्ता द्वारा कीमतों पर उतार-चढ़ाव से स्टाकों और शेयरों में होने वाली हानि से बचने के लिए की गर्इ हो; या

() वायदा बाजार या स्टाक एक्सचेंज के सदस्य द्वारा दलाली या अंतरपणन की प्रकृति के किसी संव्यवहार के अनुक्रम में की गर्इ संविदा, जो ऐसे सदस्य की हैसियत में उसके कारबार के मामूली अनुक्रम में होने वाली हानि से बचने के लिए की गर्इ हो; 38[या]

39[() प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड 40[(कग)]41 में निर्दिष्ट व्युत्पन्नों में व्यापार के संबंध में किया गया कोर्इ पात्र संव्यवहार, जो किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज में किया जाता है। 41क[(या)]]

41ख[() वस्तु व्युत्पन्नों में व्यापार के संबंध में 41ग[किसी मान्यताप्राप्त संगम में किया गया ऐसा कोर्इ पात्र संव्यवहार, जो वित्त अधिनियम, 2013 (2013 का 17) के अध्याय 7 के अधीन वस्तु संव्यवहार कर के लिए प्रभार्य हो];

42[42क[स्पष्टीकरण 1]–42ख[खंड घ] के प्रयोजनों के लिए,

(i) "पात्र संव्यवहार" से कोर्इ ऐसा संव्यवहार अभिप्रेत है,–

() जो भारतीय प्रतिभूति और विनियमन बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) की धारा 12 के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी स्टाक ब्रोकर या उप-ब्रोकर या ऐसे अन्य मध्यवर्ती के माध्यम से प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) या भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) या निक्षेपागार अधिनियम, 1996 (1996 का 22) के उपबंधों और उन अधिनियमों के अधीन बनाए गए नियमों, विनियमों या उपविधियों अथवा जारी किए गए निर्देशों के अनुसार स्क्रीन-आधारित प्रणालियों पर या बैंकों अथवा म्युचुअल फंड द्वारा किसी मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज पर इलैक्ट्रॉनिक रूप से किया जाता है; और

() जिसका ऐसे स्टाक ब्रोकर या उप-ब्रोकर या ऐसे अन्य मध्यवर्ती द्वारा प्रत्येक ग्राहक को जारी किए गए समयांकित संविदा टिप्पण द्वारा, जिसमें संविदा टिप्पण में उपखंड () में निर्दिष्ट किसी अधिनियम के अधीन आबंटित विशिष्ट ग्राहक पहचान संख्यांक और इस अधिनियम के अधीन आबंटित स्थायी लेखा संख्यांक उपदर्शित हो, समर्थन होता है;

(ii) "मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज" से प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड (च)43 में यथानिर्दिष्ट कोर्इ मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज अभिप्रेत है और जो ऐसी शर्तें पूरा करता है, जो इस प्रयोजन के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा विहित और अधिसूचित की जाएं;]

42ग[स्पष्टीकरण 2–खंड (ड़) के प्रयोजनों के लिए,–

(i) "वस्तु व्युत्पन्न" पद का वही अर्थ होगा, जो वित्त अधिनियम, 2013 के अध्याय 7 में उसका है;

(ii) "पात्र संव्यवहार" पद से कोर्इ ऐसा संव्यवहार अभिप्रेत है,–

() जो अग्रिम संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1952 (1952 का 74) के उपबंधों और किसी मान्यताप्राप्त संगम के संबंध में उस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों, विनियमों या उपविधियों या जारी किए गए निदेशों के अनुसार, वस्तु व्युत्पन्न में व्यापार करने के लिए मान्यताप्राप्त संगम की उपविधियों, नियमों और विनियमों के अधीन रजिस्ट्रीकृत सदस्य या किसी मध्यवर्ती के माध्यम से स्क्रीन आधारित प्रणालियों पर इलैक्ट्रानिक रूप से किया जाता है; और

() जिसका ऐसे सदस्य या ऐसे मध्यवर्ती द्वारा प्रत्येक ग्राहक को जारी किए गए समय स्टांप संविदा टिप्पण द्वारा, जिसमें संविदा टिप्पण में उपखंड () में निर्दिष्ट किसी भी अधिनियम, नियमों, विनियमों या उपविधियों के अधीन आबंटित विशेष ग्राहक पहचान संख्यांक और इस अधिनियम के अधीन आबंटित स्थायी लेखा संख्यांक उपदर्शित हो, समर्थन किया जाता है;

(iii) "मान्यताप्राप्त संगम" से अग्रिम संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1952 (1952 का 74) की धारा 2 के खंड () में यथानिर्दिष्ट कोर्इ मान्यताप्राप्त संगम अभिप्रेत है और जो ऐसी शर्तों को पूरा करता है, जो विहित की जाएं और जिसे इस प्रयोजन के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाता है;]

44(6) ‘‘अवलिखित मूल्य’’ से अभिप्रेत है–

() पूर्ववर्ष में अर्जित आस्तियों की दशा में, निर्धारिती की वास्तविक लागत,

() पूर्ववर्ष के पहले अर्जित आस्तियों की दशा में निर्धारिती की वह वास्तविक लागत जो इस अधिनियम के अधीन या भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) या उस अधिनियम द्वारा निरसित किसी अधिनियम के अधीन या उस समय जब कि भारतीय आय-कर अधिनियम, 1886 (1886 का 2) प्रवृत्त था जारी किए गए किन्हीं कार्यपालिका आदेशों के अधीन उसको सभी वस्तुत: अनुज्ञात45 किए गए अवक्षयण को उसमें से घटाकर आए :

46[परन्तु धारा 32 की उपधारा (1) के खंड (ii) के प्रयोजनों के लिए भवनों, मशीनरी या संयंत्र की बाबत अवलिखित मूल्य अवधारित करने में ‘‘वस्तुत: अनुज्ञात किए गए अवक्षयण’’ के अंतर्गत ऐसा अवक्षयण जो भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) की धारा 10 की उपधारा (2) के खंड (vi) के उपखंड (), () और () के अधीन अनुज्ञात किया गया हो वहां नहीं आता है जहां ऐसा अवक्षयण उक्त खंड (vi) के प्रयोजनों के लिए अवलिखित मूल्य को अवधारित करने में कटौती योग्य नहीं था;]

47[() किसी आस्ति समूह की दशा में,–

(i) 1 अप्रैल, 1988 को प्रारम्भ होने वाले निर्धारण वर्ष से सुसंगत किसी पूर्ववर्ष की बाबत उस पूर्ववर्ष के आरम्भ पर आस्ति समूह के अंतर्गत आने वाली सभी आस्तियों के अवलिखित मूल्य का योग जिसका, समायोजन–

() उस पूर्ववर्ष के दौरान अर्जित उस समूह के अंतर्गत आने वाली किसी आस्ति की वास्तविक लागत बढ़ाकर किया गया है; और

() उस समूह के अंतर्गत आने वाली किसी आस्ति की बाबत जो उस पूर्ववर्ष के दौरान विक्रीत की जाती है या व्यक्त की जाती है या तोड़ दी जाती है या नष्ट की जाती है, संदेय धन तथा स्क्रैप मूल्य की रकम, यदि कोर्इ हो घटा कर किया गया है, तथापि ऐसी घटार्इ जाने वाली रकम इस प्रकार बढ़ाए गए अवलिखित मूल्य से अधिक नहीं होगी; और

48[() मंदी विक्रय की दशा में, उस समूह के अंतर्गत आने वाली आस्ति की वास्तविक लागत की गिरावट, जो निम्नलिखित में से घटार्इ गर्इ हो–

() 1 अप्रैल, 1988 से पूर्व होने वाले निर्धारण वर्ष से सुसंगत किसी पूर्ववर्ष की बाबत अधिनियम के अधीन या भारतीय आय-कर अधिनियम, 1922 (1922 का 11) के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन उसे वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण की रकम; और

() अवक्षयण की ऐसी रकम जो निर्धारिती को 1 अप्रैल, 1988 को या उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले किसी निर्धारण वर्ष के लिए अनुज्ञात होती मानो आस्ति केवल सुसंगत आस्ति-समूह की आस्ति थी,

किंतु ऐसी गिरावट की रकम अवलिखित मूल्य से अधिक नहीं है;]

(ii) 1 अप्रैल, 1989 को या उसके पश्चात् प्रारम्भ होने वाले निर्धारण वर्ष से सुसंगत किसी पूर्ववर्ष की बाबत ठीक पूर्ववर्ती पूर्ववर्ष में आस्ति समूह का अवलिखित मूल्य जिसमें से उक्त पूर्ववर्ती पूर्ववर्ष के संबंध में उस आस्ति समूह की बाबत वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण घटा दिया जाएगा और जिसका मद (i) में निर्दिष्ट रूप से बढ़ाकर या घटाकर समायोजन किया जाएगा।]

स्पष्टीकरण 1.—जब कारबार या वृत्ति में उत्तराधिकार की दशा मंप धारा 170 की उपधारा (2) के अधीन उत्तराधिकारी पर निर्धारण किया जाता है तब 49[किसी आस्ति या आस्ति समूह] का अवलिखित मूल्य वह रकम होगी जिसे उसका अवलिखित मूल्य तब माना गया होता यदि निर्धारण उस व्यक्ति पर जिसका उत्तराधिकार मिला है प्रत्यक्षत: किया जाता।

50[स्पष्टीकरण 2.—जहां किसी पूर्ववर्ष में कोर्इ आस्ति समूह–

() किसी नियंत्री कंपनी द्वारा उसकी समनुषंगी कंपनी को या किसी समनुषंगी कंपनी द्वारा उसकी नियंत्री कंपनी को अंतरित किया जाता है और धारा 47 के यथास्थिति, खंड (iv) या खंड (v) की शर्तें पूरी कर दी जाती हैं; अथवा

() समामेलन की किसी स्कीम में समामेलक कंपनी द्वारा किसी समामेलित कंपनी को अंतरित किया जाता है, और समामेलित कंपनी भारतीय कंपनी है,

वहां खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति, अंतरिती कंपनी या समामेलित कंपनी की दशा में आस्ति समूह की वास्तविक लागत अंतरक कंपनी या समामेलक कंपनी की दशा में आस्ति समूह का ठीक पूर्ववर्ती पूर्ववर्ष के लिए अवलिखित मूल्य होगी जिसमें से उक्त पूर्ववर्ती पूर्ववर्ष के संबंध में वस्तुत: अनुज्ञात अवक्षयण की रकम घटा दी जाएगी।]

51[स्पष्टीकरण 2क.—जहां किसी पूर्ववर्ष में आस्ति समूह के भाग किसी आस्ति का अविलयित कंपनी द्वारा पारिणामी कंपनी को अंतरण किया जाता है वहां खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, ठीक पूर्ववर्ती पूर्ववर्ष के लिए अविलयित कंपनी की 52[आस्तियों का अवलिखित मूल्य] अविलयन के अनुसरण में परिणामी कंपनी को अंतरित आस्तियों के बही मूल्यों में से घटाया जाएगा।

स्पष्टीकरण 2ख.—जहां किसी पूर्ववर्ष में आस्ति समूह का भाग रूप किसी आस्ति का अविलयित कंपनी द्वारा पारिणामी कंपनी को अंतरण किया जाता है वहां खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी पारिणामी कंपनी की दशा में आस्ति समूह का अवलिखित मूल्य अविलयन से ठीक पूर्व अविलयित कंपनी की 53[54[* * *] अंतरित आस्तियों का अवलिखित मूल्य होगा]।

54क[स्पष्टीकरण 2ग.—जहां किसी पूर्ववर्ष में किसी आस्ति समूह का किसी प्राइवेट कंपनी या असूचीबद्ध कंपनी द्वारा किसी सीमित दायित्व वाली भागीदारी को अंतरण किया जाता है और धारा 47 के खंड (xiiiख) के परंतुक में विनिर्दिष्ट शर्तों को पूरा किया जाता है, वहां खंड (1) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, सीमित दायित्व वाली भागीदारी की दशा में, आस्ति समूह की वास्तविक लागत आस्ति समूह का वह अवलिखित मूल्य होगी, जो उस कंपनी के सीमित दायित्व वाली भागीदारी में संपरिवर्तन की तारीख को उक्त कंपनी की दशा में थी।]

55[* * *]]

स्पष्टीकरण 3.धारा 32 की उपधारा (2) के अधीन अग्रनीत किसी अवक्षयण की बाबत किसी मोक के बारे में समझा जाएगा कि वह ‘‘वस्तुत: अनुज्ञात किया गया’’ अवक्षयण है।

56[स्पष्टीकरण 4.—इस खंड के प्रयोजनों के लिए, ‘‘संदेय धन’’ और ‘‘विक्रीत’’ पदों का वही अर्थ है जो धारा 41 की उपधारा (4) के नीचे स्पष्टीकरण में है।]

57[स्पष्टीकरण 5.—जहां किसी पूर्ववर्ष में, आस्ति समूह के भाग रूप कोर्इ आस्ति भारत में मान्यताप्राप्त स्टाक एक्सचेंज द्वारा किसी कंपनी को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 (1992 का 15) की धारा 3 के अधीन स्थापित भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा अनुमोदित निगमीकरण के लिए किसी स्कीम के अधीन अंतरित की जाती है वहां ऐसी कंपनी की दशा में आस्ति समूह का अवलिखित मूल्य ऐसे अंतरण के ठीक पूर्व अंतरित आस्तियों का अवलिखित मूल्य होगा।]

57क[स्पष्टीकरण 6 - जहां किसी निर्धारिती से विचाराधीन निर्धारण वर्ष से सुसंगत पूर्ववर्ष से पूर्ववर्ती किसी पूर्ववर्ष या पूर्ववर्षों के लिए इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अपनी कुल आय की संगणना करना अपेक्षित नहीं था वहां,–

() किसी आस्ति की वास्तविक लागत को लेखा बहियों में ऐसी आस्ति के, पुनर्मूल्यांकन के कारण मानी जा सकने वाली रकम से यदि कोर्इ हो, समायोजित किया जाएगा ;

() ऐसी आस्ति पर अवक्षयण की कुल रकम को, जो विचाराधीन निर्धारण वर्ष में सुसंगत पूर्ववर्ष से पूर्ववर्ती ऐसे पूर्ववर्ष या पूर्ववर्षों की बाबत निर्धारिती की लेखा बहियों में दी गर्इ है, इस खंड के प्रयोजनों के लिए इस अधिनियम के अधीन वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण समझा जाएगा ; और

() खंड () के अधीन वास्तव में अनुज्ञात अवक्षयण को आस्ति के ऐसे पुनर्मूल्यांकन के कारण माने जा सकने वाले अवक्षयण की रकम से समायोजित किया जाएगा।]

57ख[स्पष्टीकरण 7-इस खंड के प्रयोजनों के लिए, जहां निर्धारिती की आय भागत: वृ+षि के और भागत: "कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ" शीर्ष के अधीन आय-कर से प्रभार्य कारबार से व्युत्पन्न होती है, वहां पूर्ववर्ष से पहले अर्जित आस्तियों के अवलिखित मूल्य की संगणना करने के लिए अवक्षयण की कुल रकम की संगणना इस प्रकार की जाएगी मानो संपूर्ण आय "कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ" शीर्ष के अधीन निर्धारिती के कारबार से व्युत्पन्न होती है और इस प्रकार संगणित अवक्षयण इस अधिनियम के अधीन वस्तुत: अनुज्ञात किया गया अवक्षयण माना जाएगा।]

 

11. ‘‘जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो’’, ‘‘वास्तविक लागत’’ और ‘‘जिसकी पूर्ति’’ पदों के अर्थ के लिए सम्बंधित केस लाज़ देखिये

12. परिपत्र सं. 190, तारीख 1.3.1976 भी देखिये

सुसंगत केस लॉज़ देखिये

13. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1967 द्वारा 1.4.1968 से प्रतिस्थापित। मूल परन्तुक वित्त अधिनियम, 1966 द्वारा 1.4.1966 से अंत:स्थापित किया गया था।

14. वित्त अधिनियम, 1975 द्वारा 1.4.1975 से अंत:स्थापित।

15. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से ‘‘उपधारा (1) के खंड (i), खंड (ii) या खंड (iii) या उपधारा (1क)’’ के स्थान पर प्रतिस्थापित। इटैलिक शब्द कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 1970 द्वारा 1.4.1971 से अंत:स्थापित किये गये थे।

16. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से प्रतिस्थापित।

17. प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.4.1988 से "आय-कर" के स्थान पर प्रतिस्थापित।

18. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.10.1998 से ‘उपायुक्त’ के स्थान पर प्रतिस्थापित। इससे पहले, ‘उपायुक्त’ शब्द ‘सहायक आयुक्त (निरीक्षण)’ के स्थान पर प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.4.1988 से रखा गया था।

19. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व स्पष्टीकरण 4 कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 1970 द्वारा 1.4.1971 से यथासंशोधित किया गया था।

20. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1996 द्वारा 1.10.1996 से अंत:स्थापित।

21. वित्त अधिनियम, 1965 द्वारा 1.4.1965 से प्रतिस्थापित।

22. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1967 द्वारा 1.4.1967 से अंत:स्थापित।

23. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से अंत:स्थापित।

24. वित्त अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1974 से भूतलक्षी प्रभाव से अंत:स्थापित।

25. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.4.1994 से भूतलक्षी प्रभाव से अंत:स्थापित।

26. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.4.1999 से अंत:स्थापित।

27. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से अंत:स्थापित

28. वित्त अधिनियम, 2001 द्वारा 1.4.2002 से अंत:स्थापित।

28क. वित्त (सं.2) अधिनियम, 2009 द्वारा 1.4.2010 से अंत:स्थापित।

28ख. वित्त अधिनियम, 2010 द्वारा 1.4.2011 से "खंड (xiii) और खंड (xiv)" के स्थान पर प्रतिस्थापित।

29. ‘‘वस्तुत: संदत्त’’ पद के अर्थ के लिए सम्बंधित केस लाज़ देखिए

30. सुसंगत केस लॉज़ देखिए

31. ‘‘संयंत्र‘‘ और ‘‘पुस्तकें’’ पदों के अर्थ के लिए सम्बंधित केस लाज़ देखिए

32. वित्त अधिनियम, 1995 द्वारा 1.4.1962 से भूतलक्षी प्रभाव से अंत:स्थापित।

33. वित्त अधिनियम, 2003 द्वारा 1.4.2004 से अंत:स्थापित।

34. वित्त अधिनियम, 1968 द्वारा 1.4.1969 से प्रतिस्थापित।

35. परिपत्र सं. 23डी (XXXIX-4), तारीख 12.9.1960 भी देखिए

36. सुसंगत केस लॉज़ देखिए

37. ‘‘सट्टेवाला संव्यवहार’’, ‘‘संविदा’’, ‘‘वास्तविक परिदान’’ और ‘‘तय’’ पदों के अर्थ के लिए सम्बंधित केस लाज़ देखिए

38. वित्त अधिनियम, 2005 द्वारा 1.4.2006 से अंत:स्थापित।

39. वित्त अधिनियम, 2005 द्वारा 1.4.2006 से अंत:स्थापित।

40. वित्त अधिनियम, 2006 द्वारा 1.4.2006 से "(कक)" के स्थान पर प्रतिस्थापित।

41. प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2(कग) के पाठ के लिए परिशिष्ट देखिए।

41क. वित्त अधिनियम, 2013 द्वारा 1.4.2014 से अंत:स्थापित।

41ख. वित्त अधिनियम, 2013 द्वारा 1.4.2014 से अंत:स्थापित।

41ग. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2014 द्वारा भूतलक्षी रूप से 1.4.2014 से "कोर्इ पात्र संव्यवहार, जो मान्यताप्राप्त संगम में किया गया हो" शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

42. वित्त अधिनियम, 2005 द्वारा 1.4.2006 से अंत:स्थापित।

42क. वित्त अधिनियम, 2013 द्वारा 1.4.2014 से स्पष्टीकरण 1 के रूप में पुन:संख्यांकित।

42ख. वित्त अधिनियम, 2013 द्वारा 1.4.2014 से "इस खंड" शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।

42ग. वित्त अधिनियम, 2013 द्वारा 1.4.2014 से अंत:स्थापित।

43. प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 की धारा 2() के पाठ के लिए परिशिष्ट देखिए।

44. सुसंगत केस लॉज़ देखिए

45. ‘‘वस्तुत: अनुज्ञात’’ पद के अर्थ के लिए सम्बंधित केस लाज़ देखिए

46. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1965 द्वारा 1.4.1962 से भूतलक्षी प्रभाव से अंत:स्थापित।

47. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से अंत:स्थापित।

48. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से अंत:स्थापित।

49. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से ‘‘किसी आस्ति’’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।

50. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से स्पष्टीकरण 2 और स्पष्टीकरण 2क के स्थान पर प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पहले स्पष्टीकरण 2 वित्त अधिनियम, 1965 द्वारा 1.4.1965 से प्रतिस्थापित किया गया था और स्पष्टीकरण 2क वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1967 द्वारा 1.4.1967 से अंत:स्थापित किया गया था।

51. वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से स्पष्टीकरण 2क, स्पष्टीकरण 2ख और उसका परन्तुक अंत:स्थापित।

52. वित्त अधिनियम, 2000 द्वारा 1.4.2000 से "आस्तियों का बही मूल्य" के स्थान पर प्रतिस्थापित।

53. यथोक्त द्वारा ‘‘लेखा बहियों में दिखाया गया आस्तियों का मूल्य’’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।

54. वित्त अधिनियम, 2003 द्वारा 1.4.2004 से "लेखा बहियों में दिखाया गया" शब्दों का लोप किया गया।

54क. वित्त अधिनियम, 2010 द्वारा 1.4.2011 से अंत:स्थापित।

55. वित्त अधिनियम, 2000 द्वारा 1.4.2000 से लोप किया गया। लोप से पूर्व, वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से यथा अंत:स्थापित परन्तुक इस प्रकार था :

‘‘परन्तु यदि अविलयित कंपनी की लेखा बहियों में दिखाया गया आस्तियों का मूल्य अविलयन के ठीक पूर्व अविलयित कम्पनी के हाथ में की ऐसी आस्तियों के अवलिखित मूल्यों से अधिक है तो ऐसी अधिक राशि आस्तियों के अवलिखित मूल्य में से कम कर दी जाएगी।’’

56. कराधान विधि (संशोधन और प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम, 1986 द्वारा 1.4.1988 से अंत:स्थापित।

57. वित्त अधिनियम, 2001 द्वारा 1.4.2002 से अंत:स्थापित।

57क. वित्त अधिनियम, 2008 द्वारा 1.4.2003 से भूतलक्षी प्रभाव से अंत:स्थापित।

57ख. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2009 द्वारा 1.4.2010 से अंत:स्थापित।

 

 

[वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2014 द्वारा संशोधित रूप में]