31[व्यक्ति-संगम या व्यष्टि-निकाय की आय में सदस्य के अंश की संगणना करने की पद्धति
67क. (1) ऐसे निर्धारिती की, जो [कंपनी या सहकारी सोसाइटी या सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन या भारत के किसी भाग में प्रवृत्त उस अधिनियम की तत्स्थानी किसी विधि के अधीन रजिस्टर्ड सोसाइटी से भिन्न] किसी व्यक्ति-संगम या व्यष्टि-निकाय का सदस्य है जिसमें सदस्यों के अंश अवधारित और ज्ञात हैं, कुल आय की संगणना करने में, चाहे ऐसे संगम या निकाय की कुल आय की संगणना का अंतिम परिणाम लाभ है या हानि, उसके अंश की (चाहे वह शुद्ध लाभ है या शुद्ध हानि) संगणना निम्नलिखित रूप से की जाएगी, अर्थात् :–
(क) पूर्ववर्ष की बाबत किसी सदस्य को भुगतान किया गया कोर्इ ब्याज, वेतन, बोनस, कमीशन या पारिश्रमिक को, चाहे वह किसी नाम से ज्ञात हो, संगम या निकाय की कुल आय में से घटा दिया जाएगा तथा अतिशेष अभिनिश्चित किया जाएगा और सदस्यों में उस अनुपात में प्रभाजित किया जाएगा जिसमें वे संगम या निकाय की आय में अंश के हकदार हैं;
(ख) जहां ऐसी रकम, जो खंड (क) के अधीन किसी सदस्य को प्रभाजित की जाती है, लाभ है वहां पूर्वोक्त कोर्इ ब्याज, वेतन, बोनस, कमीशन या पारिश्रमिक जिसका पूर्ववर्ष की बाबत संगम या निकाय द्वारा सदस्य को भुगतान किया जाता है, उस रकम में जोड़ दिया जाएगा और परिणाम को संगम या निकाय की आय में सदस्य के अंश के रूप में समझा जाएगा;
(ग) जहां ऐसी रकम, जो खंड (क) के अधीन किसी सदस्य को प्रभाजित की जाती है, हानि है वहां पूर्वोक्त कोर्इ ब्याज, वेतन, बोनस, कमीशन या पारिश्रमिक जिसका पूर्ववर्ष की बाबत संगम या निकाय द्वारा सदस्य को भ्ुागतान किया जाता है, उस रकम में समायोजित किया जाएगा और परिणाम को संगम या निकाय की आय में सदस्य के अंश के रूप में समझा जाएगा।
(2) संगम या निकाय की आय या हानि में सदस्य का ऐसा अंश, जो उपधारा (1) के अधीन संगणित किया गया है, निर्धारण के प्रयोजनों के लिए, आय के विभिन्न शीर्षों के अधीन उसी रीति में प्रभाजित किया जाएगा जिससे संगम या निकाय की आय या हानि, आय के प्रत्येक शीर्ष के अधीन अवधारित की गर्इ है।
(3) कोर्इ ऐसा ब्याज, जिसका संगम या निकाय में विनिधान के प्रयोजनों के लिए किसी सदस्य द्वारा उधार ली गर्इ पूंजी पर उसके द्वारा भुगतान किया गया है, संगम या निकाय की आय में उसके अंश की बाबत ‘‘कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ’’ शीर्ष के अधीन प्रभार्य उसके अंश की संगणना करने में, उसके अंश में से घटा दिया जाएगा।
स्पष्टीकरण.–इस धारा में ‘‘भुगतान’’ का वही अर्थ है जो उसका धारा 43 के खंड (2) में है।]
31. प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से अंत:स्थापित।
[वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2014 द्वारा संशोधित रूप में]