77[ऐसे किसी आश्रित के, जो नि:शक्त व्यक्ति है, चिकित्सीय उपचार सहित भरण-पोषण की बाबत कटौती
80घघ. (1) जहां किसी निर्धारिती ने, जो व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुंब है और भारत में निवासी है, पूर्ववर्ष के दौरान,–
(क) किसी आश्रित के, जो नि:शक्त व्यक्ति है, चिकित्सीय उपचार (जिसके अंतर्गत परिचर्या भी है), प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए कोर्इ व्यय किया है; या
(ख) जीवन बीमा निगम या किसी अन्य बीमाकर्ता या प्रशासक या विनिर्दिष्ट कंपनी द्वारा उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए आश्रित के, जो नि:शक्त व्यक्ति है, भरण-पोषण के लिए इस निमित्त बनार्इ गर्इ और बोर्ड द्वारा अनुमोदित किसी स्कीम के अधीन कोर्इ रकम संदत्त या जमा की है,
वहाँ निर्धारिती को इस धारा के उपबंधों के अनुसार और उनके अधीन रहते हुए पूर्ववर्ष की बाबत उसकी सकल कुल आय में से पचास हजार रुपए की राशि की कटौती अनुज्ञात की जाएगी:
परन्तु जहां ऐसा आश्रित गंभीर नि:शक्तता से ग्रस्त व्यक्ति है वहां इस उपधारा के उपबंधों का प्रभाव इस प्रकार होगा मानो "पचास हजार रुपए" शब्दों के स्थान पर 77क["एक लाख रुपए"] शब्द रखे गए हों।
(2) उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कटौती केवल तभी अनुज्ञात की जाएगी यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी कर दी जाती हैं, अर्थात्:–
(क) उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट स्कीम में ऐसे किसी व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुंब के सदस्य की, जिसके नाम में स्कीम में अभिदाय किया गया है, मृत्यु की दशा में किसी आश्रित के, जो नि:शक्त व्यक्ति है, फायदे के लिए वार्षिकी या एकमुश्त राशि के संदाय का उपबंध है;
(ख) निर्धारिती ऐसे आश्रित के, जो नि:शक्त व्यक्ति है, फायदे के लिए आश्रित का, जो नि:शक्त व्यक्ति है, अथवा उसकी ओर से संदाय प्राप्त करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति या किसी न्यास को नामनिर्देशित करता है।
(3) यदि आश्रित की, जो नि:शक्त व्यक्ति है, उपधारा (2) में निर्दिष्ट व्यष्टि या हिन्दु अविभक्त कुटुंब के सदस्य से पहले मृत्यु हो जाती है तो उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन संदत्त या जमा की गर्इ रकम के बराबर रकम को उस पूर्ववर्ष में, जिसमें ऐसी रकम निर्धारिती द्वारा प्राप्त की जाती है, निर्धारिती की आय समझा जाएगा और तदनुसार वह उस पूर्ववर्ष की आय के रूप में कर से प्रभार्य होगी।
(4) निर्धारिती, जो इस धारा के अधीन कटौती का दावा करता है, उस निर्धारण वर्ष की बाबत, जिसके लिए कटौती का दावा किया गया है, धारा 139 के अधीन आय की विवरणी के साथ चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा विहित प्ररूप और रीति में78 जारी प्रमाणपत्र की प्रति भी देगा:
परंतु जहां नि:शक्तता की स्थिति का, पूर्वोक्त प्रमाणपत्र में नियत अवधि के पश्चात् पुनर्निर्धारण अपेक्षित हो, वहां उस पूर्ववर्ष की, जिसके दौरान नि:शक्तता का पूर्वोक्त प्रमाणपत्र समाप्त हुआ था, समाप्ति के पश्चात् आरम्भ होने वाले किसी पूर्ववर्ष से संबंधित किसी निर्धारण वर्ष के लिए इस धारा के अधीन कोर्इ कटौती तब तक अनुज्ञात नहीं की जाएगी जब तक कि चिकित्सा प्राधिकारी से, ऐसे प्रारूप और रीति में, जो विहित की जाए, नया प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं किया जाता है और आय की विवरणी के साथ उसकी एक प्रति नहीं दे दी जाती है।
स्पष्टीकरण.–इस धारा के प्रयोजनों के लिए,–
(क) "प्रशासक से भारतीय यूनिट ट्रस्ट (उपक्रम का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 2002 (2002 का 58) की धारा 2 के खंड (क) में निर्दिष्ट प्रशासक अभिप्रेत है;79
(ख) "आश्रित" से अभिप्रेत है,–
(i) किसी व्यष्टि की दशा में, व्यष्टि का पति/की पत्नी, बच्चे, माता-पिता, भार्इ और बहनें या उनमें से कोर्इ;
(ii) किसी हिन्दू अविभक्त कुटुंब की दशा में, हिन्दू अविभक्त कुटुंब का कोर्इ सदस्य,
जो अपनी सहायता और भरण-पोषण के लिए ऐसे व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुंब पर पूर्णत: या मुख्यत: आश्रित है और जिसने पूर्ववर्ष से संबंधित निर्धारण वर्ष के लिए अपनी कुल आय की संगणना करने में धारा 80प के अधीन किसी कटौती का दावा नहीं किया है;
(ग) "नि:शक्तता" का वही अर्थ है जो उसका नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 2 के खंड (झ)80 में है 81[और इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तता ग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (क), खंड (ग) और खंड (ज) में उल्लिखित "स्वपरायणता", "प्रमस्तिष्क घात" और "बहु-नि:शक्तता" भी है।]
(घ) "जीवन बीमा निगम" का वही अर्थ है जो धारा 88 की उपधारा (8) के खंड (iii) में है;
(ड़) ''चिकित्सा प्राधिकारी" से नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 2 के खंड (त) में निर्दिष्ट चिकित्सा प्राधिकारी अभिप्रेत है 81[या ऐसा अन्य चिकित्सा प्राधिकारी अभिप्रेत है, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तता ग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (क), खंड (ग), खंड (ज), खंड (ञ) और खंड (ण) में उल्लिखित 'स्वपरायणता', 'प्रमस्तिष्क घात', 'बहु-नि:शक्तता', 'नि:शक्त व्यक्ति' और 'गंभीर नि:शक्तता' को प्रमाणित करने के लिए अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए;]
(च) "नि:शक्त व्यक्ति" से नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 2 के खंड (न)81क में 82[या राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तता ग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के खंड (ञ) में ] निर्दिष्ट व्यक्ति अभिप्रेत है;
82क[(छ) "गंभीर रूप से नि:शक्त व्यक्ति" से,–
(i) नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) की धारा 56 की उपधारा (4) में उल्लिखित नि:शक्तताओं में से किसी एक या अधिक नि:शक्तताओं के अस्सी या अधिक प्रतिशत नि:शक्तता से ग्रस्त व्यक्ति; या
(ii) राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तता ग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 (1999 का 44) की धारा 2 के उपखंड (ण) में उल्लिखित गंभीर रूप से नि:शक्त व्यक्ति,
अभिप्रेत है;
(ज) "विनिर्दिष्ट कंपनी" से भारतीय यूनिट ट्रस्ट (उपक्रमों का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 2002 (2002 का 58) की धारा 2 के खंड (ज) में निर्दिष्ट कंपनी अभिप्रेत है।]
77. वित्त अधिनियम, 2003 द्वारा 1.4.2004 से प्रतिस्थापित। प्रतिस्थापन से पूर्व, धारा 80घघ वित्त (संñ 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.4.1999 से धारा 80घघ और 80घघक के स्थान पर प्रतिस्थापित की गर्इ थी। इससे पूर्व, धारा 80घघ वित्त अधिनियम, 1990 द्वारा 1.4.1991 से अंत:स्थापित की गर्इ थी और इसके पश्चात् वित्त अधिनियम, 1992 द्वारा 1.4.1993 से और वित्त अधिनियम, 1993 द्वारा 1.4.1994 से संशोधित की गर्इ थी। धारा 80घघक वित्त अधिनियम, 1995 द्वारा 1.4.1996 से अंत:स्थापित की गर्इ थी। प्रतिस्थापन किये जाने से पूर्व धारा 80घघ, जो वित्त (संñ 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.4.1999 से, वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से तथा वित्त अधिनियम, 2001 द्वारा 1.4.2002 से संशोधित की गर्इ थी, इस प्रकार थी :
'80घघ. असुविधाग्रस्त आश्रितों के भरणपोषण, जिसमें चिकित्सीय उपचार भी है, की बाबत कटौती.–(1) जहां किसी निर्धारिती ने, जो भारत में निवासी है और व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब है, पूर्ववर्ष के दौरान,–
(क) किसी असुविधाग्रस्त आश्रित के चिकित्सीय उपचार (जिसके अंतर्गत परिचर्या है), प्रशिक्षण और पुनर्वास के संबंध में कोर्इ व्यय उपगत किया है; या
(ख) उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए और बोर्ड द्वारा असुविधाग्रस्त आश्रित के भरणपोषण के लिए इस निमित्त अनुमोदित जीवन बीमा निगम या किसी अन्य बीमाकर्ता या, भारतीय यूनिट ट्रस्ट द्वारा इस निमित्त बनार्इ गर्इ किसी स्कीम के अधीन कोर्इ रकम संदत्त या जमा की है, वहां,
निर्धारिती को इस धारा के उपबंधों के अनुसार और उनके अधीन रहते हुए पूर्ववर्ष की बाबत चालीस हजार रुपए की राशि की कटौती अनुज्ञात की जाएगी।
(2) उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कटौती केवल तब अनुज्ञात की जाएगी जब निम्नलिखित शर्तें पूरी की जाएं, अर्थात् :–
(क) उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट स्कीम में उस व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के सदस्य की मृत्यु की दशा में, जिसके नाम से स्कीम में अंशदान किया गया है, असुविधाग्रस्त आश्रित के फायदे के लिए वार्षिकी या एकमुश्त रकम के भुगतान का उपबंध है;
(ख) निर्धारिती, असुविधाग्रस्त आश्रित के फायदे के लिए असुविधाग्रस्त आश्रित को या उसकी ओर से भुगतान प्राप्त करने के लिए किसी अन्य व्यक्ति या ट्रस्ट को नामनिर्दिष्ट करे।
(3) यदि असुविधाग्रस्त आश्रित की मृत्यु उपधारा (2) में निर्दिष्ट व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के सदस्य से पहले हो जाती है तो उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन संदत्त या जमा रकम के बराबर रकम उस पूर्ववर्ष में निर्धारिती की आय समझी जाएगी जिसमें ऐसी रकम निर्धारिती द्वारा प्राप्त की जाती है और तदनुसार वह उस पूर्ववर्ष की आय के रूप में कर के लिए प्रभार्य होगी।
(4) इस धारा में,–
(क) "सरकारी अस्पताल" के अंतर्गत सरकार के किसी विभाग द्वारा सरकारी सेवकों के वर्ग या वर्गों और उनके कुटुम्ब के सदस्यों की चिकित्सीय परिचर्या और उपचार के लिए स्थापित या चलाया जा रहा कोर्इ विभागीय औषद्यालय, जो चाहे पूर्णकालिक हो या अंशकालिक और किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा अनुरक्षित कोर्इ अन्य अस्पताल तथा ऐसा कोर्इ अन्य अस्पताल भी है, जिसके साथ सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के उपचार के लिए व्यवस्था की है;
(ख) "असुविधाग्रस्त आश्रित" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो,–
(i) यथास्थिति, व्यष्टि का नातेदार है या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब का सदस्य है और अपने रखरखाव तथा भरणपोषण के लिए उस व्यक्ति या हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के सदस्य से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति पर आश्रित नहीं है; और
(ii) ऐसी स्थायी शारीरिक नि:शक्तता से (जिसके अंतर्गत अंधापन भी है) पीड़ित है या ऐसी मानसिक मंदता से ग्रस्त है जो बोर्ड द्वारा इस निमित्त बनाए गए नियमों में इस धारा के प्रयोजनों के लिए स्थायी शारीरिक नि:शक्तता या मानसिक मंदता है जिसे किसी सरकारी अस्पताल में कार्यरत, यथास्थिति, किसी चिकित्सक, शल्य चिकित्सक, नेत्र चिकित्सक या मन:चिकित्सक ने प्रमाणित किया है और जिसका प्रभाव यह है कि सामान्य कार्य की अथवा अभिलाभपूर्ण नियोजन या उपजीविका में लगने की उस व्यक्ति की सामथ्र्य पर्याप्त रूप से घट गर्इ है;
(ग) "जीवन बीमा निगम" का वही अर्थ होगा जो उसका धारा 88 की उपधारा (8) के खंड (iii) में है;
(घ) "भारतीय यूनिट ट्रस्ट" से भारतीय यूनिट ट्रस्ट अधिनियम, 1963 (1963 का 52) के अधीन स्थापित भारतीय यूनिट ट्रस्ट अभिप्रेत है।'
77क. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2009 द्वारा 1.4.2010 से "पचहत्तर हजार रुपए" शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
78. नियम 11क देखिए। प्रमाणपत्र के विहित प्ररूप के लिए, टैक्समैन्स इन्कम टैक्स रूल्स देखिए।
79. भारतीय यूनिट ट्रस्ट (उपक्रम का अंतरण और निरसन) अधिनियम, 2002 के पाठ के लिए टैक्समैन्स डायरेक्ट टैक्सेज मैनुअल खंड 3 देखिए।
80. नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) और राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 के अधीन सुसंगत पदों की परिभाषा के लिए परिशिष्ट देखिए।
81. वित्त (संñ 2) अधिनियम, 2004 द्वारा 1.4.2005 से अंत:स्थापित।
81क. नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 (1996 का 1) और राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता और बहु-नि:शक्तताग्रस्त व्यक्ति कल्याण न्यास अधिनियम, 1999 के अधीन सुसंगत पदों की परिभाषा के लिए परिशिष्ट देखिए।
82. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 2004 द्वारा 1.4.2005 से अंत:स्थापित।
82क. यथोक्त द्वारा प्रतिस्थापित।
[वित्त अधिनियम, 2011 द्वारा संशोधित रूप में]