15[शास्ति अधिरोपित करने के लिए परिसीमा का वर्जन
275. 16[(1)] इस अध्याय के अधीन शास्ति अधिरोपित करने वाला कोर्इ आदेश–
17[(क) उस दशा में, जहां सुसंगत निर्धारण या अन्य आदेश धारा 246 18[या धारा 246क] के अधीन 19[* * *] आयुक्त (अपील) को अपील का या धारा 253 के अधीन अपील अधिकरण को अपील का विषय है उस वित्तीय वर्ष, जिसमें वह कार्यवाही, जिसके दौरान शास्ति के अधिरोपण की कार्यवाही प्रारंभ की गर्इ है, पूरी होने की समाप्ति के पश्चात् या उस मास के अंत से छह मास की जिसमें, 20[* * *] आयुक्त (अपील) या अपील अधिकरण, जो भी हो, का आदेश मुख्य आयुक्त या आयुक्त को प्राप्त होता है, अवधियों में से जो भी बाद में समाप्त हो, उस अवधि की समाप्ति के पश्चात् पारित नहीं किया जाएगा :
21[परंतु उस दशा में जहां सुसंगत निर्धारण या अन्य आदेश धारा 246 या धारा 246क के अधीन आयुक्त (अपील) को की गर्इ अपील की विषयवस्तु है और आयुक्त (अपील) ऐसी अपील को निपटाते हुए 1 जून, 2003 को या उसके पश्चात् आदेश पारित करता है, वहां शास्ति अधिरोपित करने वाला कोर्इ आदेश उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पूर्व, जिसमें वे कार्यवाहियां, जिनके अनुक्रम में शास्ति के अधिरोपण की कार्रवार्इ प्रारंभ की गर्इ है, पूरी हुर्इ हैं या उस वित्तीय वर्ष के, जिसमें आयुक्त (अपील) का आदेश मुख्य आयुक्त या आयुक्त को प्राप्त होता है, समाप्ति से एक वर्ष के भीतर, इनमें से जो भी पश्चात्वर्ती हो, पारित किया जाएगा;]
(ख) उस दशा में जहां सुसंगत निर्धारण या अन्य आदेश धारा 263 21[या धारा 264] के अधीन पुनरीक्षण का विषय है, उस मास के अंत से छह मास की, जिसमें ऐसा पुनरीक्षण आदेश पारित किया जाता है, समाप्ति के पश्चात् पारित नहीं किया जाएगा;
(ग) किसी अन्य दशा में, उस वित्तीय वर्ष की जिसमें वह कार्यवाही पूरी हुर्इ है जिसके दौरान शास्ति के अधिरोपण की कार्यवाही प्रारंभ की गर्इ, या उस मास के अंत से छह मास की जिसमें शास्ति के अधिरोपण की कार्यवाही प्रारम्भ की जाती है, इन अवधियों में से, जो भी बाद में समाप्त हो, उस अवधि की समाप्ति के पश्चात् पारित नहीं किया जाएगा।]
22[(1क) उस दशा में, जहां सुसंगत निर्धारण या अन्य आदेश धारा 246 या धारा 246क के अधीन आयुक्त (अपील) को अपील या धारा 253 के अधीन अपील अधिकरण को अपील या धारा 260क के अधीन उच्च न्यायालय को अपील या धारा 261 के अधीन उच्चतम न्यायालय को दलील या धारा 263 या धारा 264 के अधीन पुनरीक्षण आवेदन की विषयवस्तु है और शास्ति अधिरोपण या शास्ति में वृद्धि करने या उसे घटाने या उसे रद्द करने या शास्ति अधिरोपण के लिए कार्यवाहियों को बंद करने का आदेश आयुक्त (अपील) या अपील अधिकरण या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का आदेश मुख्य आयुक्त या आयुक्त को प्राप्त होने से पहले या धारा 263 या धारा 264 के अधीन पुनरीक्षण आदेश पारित किए जाने से पहले पारित किया जाता है तो शास्ति अधिरोपित करने या उसमें वृद्धि करने या उसे कम करने या उसे रद्द करने या शास्ति अधिरोपण के लिए कार्यवाहियों को बंद करने का आदेश उस निर्धारण के आधार पर पारित किया जा सकेगा जो आयुक्त (अपील) या अपील अधिकरण या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के ऐसे आदेश या धारा 263 या धारा 264 के अधीन पुनरीक्षण के आदेश को प्रभावी करते हुए पुनरीक्षित किया गया है :
परन्तु शास्ति अधिरोपित करने या उसमें वृद्धि करने या घटाने या रद्द करने या शास्ति के अधिरोपण के लिए कार्यवाहियों को बंद करने संबंधी कोर्इ आदेश,–
(क) निर्धारिती को सुन लिए जाने या सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर दिए जाने के पश्चात् :
(ख) उस मास के अंत से, जिसमें आयुक्त (अपील) या अपील अधिकरण या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय का आदेश मुख्य आयुक्त या आयुक्त को प्राप्त होता है या धारा 263 या धारा 264 के अधीन पुनरीक्षण का आदेश पारित कर दिया जाता है, छह मास की समाप्ति के पश्चात्,
ही पारित किया जाएगा, अन्यथा नहीं :
परंतु यह और कि धारा 274 की उपधारा (2) के उपबंध इस उपधारा के अधीन शास्ति अधिरोपित करने या उसमें वृद्धि करने या उसे घटाने के आदेश के संबंध में लागू होंगे।]
23[(2) इस धारा के उपबंध, जैसे कि वे प्रत्यक्ष-कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 (1988 का 4) द्वारा उनके संशोधन से ठीक पूर्व थे, 31 मार्च, 1989 को या उसके पूर्व शास्ति अधिरोपित करने के लिए आरंभ की गर्इ किसी कार्यवाही को और उसके संबंध में लागू होंगे।]
24[स्पष्टीकरण.–इस धारा के प्रयोजनों के लिए परिसीमाकाल की गणना करते समय–
(i) धारा 129 के परन्तुक के अधीन निर्धारिती को फिर से सुनवार्इ का अवसर देने में लगे समय को;
(ii) उस अवधि को जिसके दौरान धारा 245ड़ के अधीन दी गर्इ उन्मुक्ति प्रभावी रही ; और
(iii) उस अवधि को जिसके दौरान इस अध्याय के अधीन शास्ति उद्ग्रहण की कार्यवाही किसी न्यायालय के आदेश या आदेश से रोकी जाती है,
निकाल दिया जाएगा।]]
15. कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 1970 द्वारा 1.4.1971 से प्रतिस्थापित।
16. प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से पुन:संख्यांकित।
17. प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1987 द्वारा 1.4.1989 से खंड (क) और (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित। इसके प्रतिस्थापन से पहले खंड (क) वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1977 द्वारा 10.7.1978 से संशोधन किया गया था।
18. वित्त अधिनियम, 2000 द्वारा 1.6.2000 से अंत:स्थापित।
19. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.10.1998 से "उपायुक्त (अपील) या" शब्दों का लोप किया गया।
20. वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1998 द्वारा 1.10.1998 से "उपायुक्त (अपील) या" शब्दों का लोप किया गया था। इससे पहले कोट किए गए शब्द प्रत्यक्ष कर विधि (संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से अंत:स्थापित किए गए थे।
21. वित्त अधिनियम, 2003 द्वारा 1.6.2003 से अंत:स्थापित।
22. कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 2006 द्वारा 13.7.2006 से अंत:स्थापित।
23. प्रत्यक्ष कर विधि (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 1989 द्वारा 1.4.1989 से अंत:स्थापित।
24. कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 1975 द्वारा 1.4.1976 से प्रतिस्थापित।
[वित्त अधिनियम, 2008 द्वारा संशोधित रूप में]