34[अधिक प्रतिदाय पर ब्याज

234घ. (1) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुुए, जहां धारा 143 की उपधारा (1) के अधीन कोर्इ प्रतिदाय निर्धारिती को मंजूर किया जाता है और–

() नियमित निर्धारण पर कोर्इ प्रतिदाय देय नहीं है ; या

() धारा 143 की उपधारा (1) के अधीन प्रतिदाय की गर्इ रकम नियमित निर्धारण पर प्रतिदेय रकम से अधिक हो जाती है,

वहां निर्धारिती, प्रत्येक मास या प्रतिदाय की मंजूरी की तारीख से ऐसे नियमित निर्धारण की तारीख तक की अवधि में समाविष्ट किसी मास के भाग के लिए इस प्रकार प्रतिदाय की गर्इ संपूर्ण रकम या अधिक रकम पर 35[आधा] प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज का संदाय करने के लिए दायी होगा।

(2) जहां धारा 154 या धारा 155 या धारा 250 या धारा 254 या धारा 260 या धारा 262 या धारा 263 या धारा 264 के अधीन किसी आदेश के या धारा 245घ की उपधारा (4) के अधीन समझौता आयोग के किसी आदेश के परिणामस्वरूप धारा 143 की उपधारा (1) के अधीन मंजूर किए गए प्रतिदाय की रकम, यथास्थिति, पूर्णत: या भागत: सही रूप में अनुज्ञात की गर्इ मानी जाती है वहां उपधारा (1) के अधीन प्रभार्य ब्याज, यदि कोर्इ हो, तदनुसार कम कर दिया जाएगा।

स्पष्टीकरण.–जहां किसी निर्धारण वर्ष के संबंध में कोर्इ निर्धारण धारा 147 या धारा 153क के अधीन पहली बार किया जाता है वहां इस प्रकार किए गए निर्धारण का इस धारा के प्रयोजनों के लिए नियमित निर्धारण माना जाएगा।]

 

34. वित्त अधिनियम, 2003 द्वारा 1.6.2003 से अंत:स्थापित।

35. कराधान विधि (संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा 8.9.2003 से "दो बटा तीन" के स्थान पर प्रतिस्थापित।

 

 

[वित्त अधिनियम, 2008 द्वारा संशोधित रूप में]