32[कमीशन या दलाली33

194ज. कोर्इ व्यक्ति, जो व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुंब नहीं है, और जो किसी निवासी को कमीशन (जो धारा 194घ में निर्दिष्ट बीमा कमीशन नहीं है) या दलाली के रूप में किसी आय का 1 जून, 2001 को या उसके पश्चात् संदाय करने के लिए उत्तरदायी है, पाने वाले के खाते में ऐसी आय को जमा करते समय या ऐसी आय का नकद रूप में या चैक या ड्राफ्ट देकर या किसी अन्य रीति से संदाय करते समय, इनमें से जो भी पहले हो, उस पर 34[दस] प्रतिशत की दर से आय-कर की कटौती करेगा :

परन्तु इस धारा के अधीन किसी ऐसे मामले में कोर्इ कटौती नहीं की जाएगी जहां वित्तीय वर्ष के दौरान, पाने वाले के खाते में जमा की गर्इ या उसको संदत्त की गर्इ या जमा किए जाने या संदत्त किए जाने के लिए संभाव्य, यथास्थिति, ऐसी आय राशि या ऐसी आय की कुल राशि दो हजार पांच सौ रुपए से अधिक नहीं है:

35[परंतु यह और कि ऐसा कोर्इ व्यष्टि या हिन्दू अविभक्त कुटुंब, जिसका उसके द्वारा किए जा रहे कारबार या वृत्ति से कुल विक्रय, सकल प्राप्तियां या आवर्त, उस वित्तीय वर्ष के, जिसमें ऐसी कमीशन या दलाली जमा या संदत्त की जाती है, ठीक पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान धारा 44कख के खंड (क) या खंड (ख) के अधीन विनिर्दिष्ट धनीय सीमाओं से अधिक हो जाता है, इस धारा के अधीन आय-कर की कटौती के लिए दायी होगा :]

36[परंतु यह भी कि इस धारा के अधीन कोर्इ कटौती भारत संचार निगम लिमिटेड या महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड द्वारा उनके पब्लिक काल आफिस फ्रेंचाइज़ीज़ को संदेय किसी कमीशन या दलाली के संबंध में नहीं की जाएगी।]

स्पष्टीकरण.–इस धारा के प्रयोजनों के लिए–

(i) "कमीशन या दलाली" के अंतर्गत, दी गर्इ सेवाओं के लिए (जो वृत्तिक सेवाएं नहीं हैं) या माल के क्रय या विक्रय के अनुक्रम में या किसी आस्ति, मूल्यवान वस्तु या चीज से, जो प्रतिभूतियां नहीं हैं, संबंधित किसी संव्यवहार के बारे में किन्हीं सेवाओं के लिए किसी अन्य व्यक्ति की ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा, प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त या प्राप्य कोर्इ संदाय है;

(ii) "वृत्तिक सेवा" पद से विधि, चिकित्सा, इंजीनियरी या वास्तुकला वृत्ति या लेखा संकर्म या तकनीकी परामर्श या आंतरिक साजसज्जा वृत्ति या धारा 44कक के प्रयोजनों के लिए बोर्ड द्वारा अधिसूचित कोर्इ अन्य वृत्ति चलाने के प्रक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा दी गर्इ सेवाएं अभिप्रेत हैं;

(iii) "प्रतिभूति" पद का वही अर्थ होगा जो उसका प्रतिभूति संविदा (विनियमन) अधिनियम, 1956 (1956 का 42) की धारा 2 के खंड (ज) में है;

(iv) जहां कोर्इ आय, ऐसी आय का संदाय करने के लिए दायी व्यक्ति की लेखा बहियों में किसी खाते में, चाहे वह "उचंत खाते" के नाम से ज्ञात हो या किसी अन्य नाम से, जमा की जाती है वहां ऐसी राशि के जमा किए जाने को, पाने वाले के खाते में, ऐसी आय का जमा किया जाना समझा जाएगा और इस धारा के उपबंध तदनुसार लागू होंगे।]

 

32. वित्त अधिनियम, 2001 द्वारा 1.6.2001 से पुन: पुर:स्थापित। इससे पूर्व, धारा 194ड़ का वित्त अधिनियम, 1999 द्वारा 1.4.2000 से लोप किया गया था। लोप किए जाने से पूर्व धारा 194ड़, वित्त (सं. 2) अधिनियम, 1991 द्वारा 1.10.1991 से अंत:स्थापित की गर्इ थी और बाद में वित्त अधिनियम, 1992 द्वारा 1.6.1992 से संशोधित की गर्इ थी।

33. नियम 28, 28क, 28कख, 30, 31, 31क, 31कख और 37 तथा प्ररूप सं. 13, 16क, 26, 26कध और 26थ देखिए। परिपत्र सं. 6/2003, तारीख 3.9.2003 भी देखिए। सुसंगत ब्यौरे के लिये देखिए टैक्समैन्स मास्टर गाइड टु इन्कम टैक्स ऐक्ट।

34. वित्त अधिनियम, 2007 द्वारा 1.6.2007 से "पांच" के स्थान पर प्रतिस्थापित। इससे पूर्व "पांच" शब्द वित्त अधिनियम, 2002 द्वारा 1.6.2002 से 'दस' के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया था।

35. वित्त अधिनियम, 2002 द्वारा 1.6.2002 से अंत:स्थापित।

36. वित्त अधिनियम, 2007 द्वारा 1.6.2007 से अंत:स्थापित।

 

 

[वित्त अधिनियम, 2008 द्वारा संशोधित रूप में]