80ख[कुछ दशाओं में बैंककारी कंपनी के समामेलन की स्कीम में संचयित हानि और शेष अवक्षयण मोक के अग्रनयन और मुजरा करने से संबंधित उपबंध
72कक. धारा 2 के खंड (1ख) के उपखंड (i) से (iii) में या धारा 72क में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी बैंककारी कंपनी का बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 45 की उपधारा (7) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा मंजूर की गर्इ और प्रवर्तन में लार्इ गर्इ किसी स्कीम के अधीन किसी अन्य बैंककारी संस्था के साथ कोर्इ समामेलन हो गया है, ऐसी बैंककारी कंमनी की संचयित हानि और शेष अवक्षयण उस पूर्ववर्ष के लिए, जिसमें समामेलन की स्कीम प्रवर्तित की गर्इ थी, ऐसी बैंककारी संस्था की, यथास्थिति, हानि या अवक्षयण मोक समझे जाएंगे तथा इस अधिनियम के हानि और अवक्षयण मोक के मुजरा और अग्रनीत करने से संबंधित अन्य उपबंध तदनुसार लागू होंगे।
स्पष्टीकरण.–इस धारा के प्रयोजनों के लिए,–
(i) "संचयित हानि" से "कारबार या वृत्ति के लाभ और अभिलाभ" शीर्ष के अधीन समामेलक बैंककारी कंपनी की उतनी हानि (जो किसी सट्टे के कारबार में हुर्इ हानि नहीं है) अभिप्रेत है, जिसके लिए ऐसी समामेलक बैंककारी कंपनी धारा 72 के उपबंधों के अधीन अग्रनीत और मुजरा करने के लिए हकदार होती, यदि ऐसा समामेलन नहीं हुआ होता;
(ii) "बैंककारी कंपनी" का वही अर्थ होगा, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 5 के खंड (ग)80ग में उसका है;
(iii) "बैंककारी संस्था" का वही अर्थ है, जो बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) की धारा 45 की उपधारा (15)80ग में उसका है;
(iv) "शेष अवक्षयण" से समामेलक बैंककारी कंपनी का उतना अवक्षयण मोक अभिप्रेत है, जो ऐसी बैंककारी कंपनी को अनुज्ञात किए जाने के लिए शेष रहता है और अनुज्ञात किया गया होता, यदि ऐसा समामेलन न हुआ होता।]
80ख. वित्त अधिनियम, 2005 द्वारा 1.4.2005 से अंत:स्थापित।
80ग. बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(ग) और 45(15) के पाठ के लिए परिशिष्ट एक देखिए।
[वित्त अधिनियम, 2006 द्वारा संशोधित रूप में]