अध्याय III

भरण-पोषण

पत्नी का भरण-पोषण

18.(1) इस धारा के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई हिन्दू पत्नी, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व या पश्चात् विवाहित हुई हो, अपने जीवनकाल में अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी।

(2) हिन्दू पत्नी अपने भरण-पोषण के दावे को खोये बिना अपने पति से अलग रहने की हकदार होगी-

() यदि वह परित्याग का दोषी है, अर्थात्, बिना उचित कारण के और उसकी सहमति के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे त्यागने का, या जानबूझकर उसकी उपेक्षा करने का;
() यदि उसने उसके साथ ऐसी क्रूरता से व्यवहार किया है जिससे उसके मन में यह उचित आशंका पैदा हो गई है कि उसके पति के साथ रहना हानिकारक या हानिकर होगा;
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() यदि उसकी कोई अन्य पत्नी जीवित हो;
(ड़) यदि वह उसी घर में उपपत्नी रखता है जिसमें उसकी पत्नी रहती है या वह अन्यत्र उपपत्नी के साथ आदतन रहता है;
() यदि वह किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण करके हिंदू नहीं रह गया है;
() यदि उसके अलग रहने को उचित ठहराने वाला कोई अन्य कारण है।

(3) यदि कोई हिन्दू पत्नी व्यभिचारिणी है या किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण करके हिन्दू नहीं रह गई है तो वह अपने पति से पृथक निवास और भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी।